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________________ "विचार-विमर्श तो नहीं किया।" "तो आपने कैसे समझा कि यह रानीजी की अभिलाषा है?" "धर्मदशी तिरुवरंगदासजी ने कहा कि यह रानी की इच्छा है। राजधानी पत्र भेजो। मैंने दिया।" "रानीजी के नाम से कोई कुछ कहे तो अपने राज्य की रीति के अनुसार उनसे पूछना चाहिए कि इसके लिए उनकी अनुमति है या नहीं, यह बात आपको मालूम है न?" "हाँ, मालूम है।" "तो इस सम्बन्ध में रानीजी से क्यों नहीं पूछा?" "उनके पिताजी ने ही बताया. इससे मैंने विश्वास कर लिया। और फिर यह किसी भी तरह से बुरा काम न था।" "आप दण्डनाथ हैं न?" "इस समय दो-तरफा युद्ध चल रहा है, यह आपको मालूम नहीं ?" "मालूम है।" "अभी राज्य के खजाने पर कितने भारी खर्च का बोझ है, यह आपको मालूम हुआ होगा?" "हाँ, मालूम है।" "ऐसी हालत में वर्तमान स्थिति में, इतना भारी व्यय-वहन करना सहज नहीं होगा, यह बात आप उन्हें समझा सकते थे न?' "हाँ, समझा तो सकता था। परन्तु मैं एक सामान्य अधिकारी हूँ। सनीजी की अभिलाषा में बाधा न हो, इसलिए कुछ हिचकिचा गया।" "अगर यहाँ खजाने में धन होता और आप उसके जिम्मेदार होते, तो आगापीछा सोचे-समझे बिना, धन खर्च कर देते, है न?" । "शायद।" "अच्छा, जाने दीजिए। अब बताइए, रानीजी की क्या अभिलाषा है?" कोनेय शंकर दण्डनाथ ने परिस्थिति को समझ लिया था। उसने रानीजी की ओर देखा। इतने में तिरुवरंगदास बोल उठा, "मेरी बेटी की अभिलाषा को मैं नहीं जानता? मैंने ही दण्डनाथ से कहा था इसलिए उन्होंने लिखा।" "आफ्ने रानीजी की स्वीकृति ली थी?" "रानी मेरी बेटी है।" "हो सकता है। पोयसल रानी अपने स्वाधिकार के अन्तर्गत विषय पर दूसरों को अधिकार नहीं दे सकती। अपनी जानकारी के बिना अपने नाम से किये जानेवाले कार्य पट्टमहादेवी शन्तला : भाग चार :: 79
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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