________________
"कुछ नहीं होगा। तुम मत डरो। मुझे यहाँ की रीति-नीति का सम्पूर्ण अनुभव है। राजमहल जानना चाहेगा कि हमें यह सब कैसे मालूम हुआ ?"
I
"बाकी विषय जैसे मालूम होते हैं, वैसे ही हम कहीं लुक- छिपकर नहीं गये । राजमहल के गुप्तचर मुझे जानते ही हैं। इसलिए सूचित कर देना ठीक है। इसमें व्यक्तिगत चरित्र पर कलंक लगाने का प्रचार भी हुआ है। आपका भी नाम जोड़ा गया है। इसलिए सन्निधान को या पट्टमहादेवी को बता देना ही अच्छा है।" मल्लोज ने
कहा।
'अच्छा सोचेंगे। यदि कुछ करना भी होगा तो कल सूर्योदय के बाद ही न !" जकणाचार्य ने बात टाल दी।
सूर्योदय से पहले ही स्थपति के लिए राजमहल से बुलावा आया ।
स्थपति ठीक वक्त पर राजमहल जा पहुँचे। श्री आचार्यजी द्वारा प्रेषित आगमशास्त्री भी आये थे। स्थपति को देखकर नमस्कार किया और उन्होंने भी प्रति नमस्कार किया । आगमशास्त्रियों ने पूछा, " स्थपति जी यह इतनी जल्दी बुलावा क्यों आया ?" "मुझे क्या मालूम ? मुझे भी सुबह-सुबह बुलावा भेजा गया। किसलिए, यह मालूम नहीं।"
64
" आपके पुत्र के हाथ बहुत तेज हैं। पिता को भी हराने वाला, आपसे भी बढ़ कर अच्छा कलाकार हैं। भगवान केशव उसे सम्पूर्ण आयु देवें, दीर्घायु बनायें और आपके नाम को अमर बनाये रखने की शक्ति दें। "
"हम दोनों आपके इस आशीर्वाद के लिए कृतज्ञ हैं।"
कीमती वस्त्र धारण किये, स्पष्ट दिखनेवाला तिलक लगाये, बड़े रोचदार गम्भीर चाल से तिरुवरंगदास आया। इतने में उदयादित्यरस और प्रधान गंगराज भी आ गये। सबका ध्यान उस तरफ गया । वन्दन - प्रतिवन्दन हुए। उचित समय पर मुख मण्डप आमन्त्रितों से भर गया। अनेक श्रीवैष्णव भी, जो वेलापुरी के नहीं थे, सम्मिलित हुए
थे ।
बन्दि - मागधों ने विरुदावली की घोषणा की।
सब उठ खड़े हुए। प्रधान गंगराज महाराज को राजोचित गौरव के साथ बुला लाये। साथ में पट्टमहादेवी और रानी लक्ष्मीदेवी भी आय उनके बैठने के बाद बाकी सब लोग बैठ गये ।
वेलापुरी के राजमहल में इतने लोगों की भीड़ इससे पहले कभी नहीं रही। ब्रिट्टिदेव ने भरी सभा को सूचित किया, " धर्मश्रद्धामुक्त आस्तिक महानुभावो ! इस सभा को बुलाने का एक कारण है। इस विषय में हमारा यह चाविमय्या अभी सभा को बताएगा । "
चत्रमय्या ने आगे आकर सभासदों को प्रणाम किया और बताया, “महासन्निधान
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: ॥