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या नहीं ? इन लोगों को इस तरह के आचरण की प्रेरणा किसने दी ? कोई बात जब हमें मालूम नहीं, तब किसी पर दोषारोपण नहीं करना चाहिए। अभी केवल सन्देह पर इन्हें गिरफ्तार किया गया है। कल रानी लक्ष्मीदेवी के आने पर उनसे और वहाँ के प्रबन्धक अधिकारी हुल्लमय्या से, तथा मायण से पहले विचार-विमर्श कर, बाद में कैदियों के बारे में पूरी तहकीकात करनी होगी। वास्तव में इन लोगों में निरपराध भी होंगे।" "जहाँ धुआँ हो वहाँ आग जरूर ही रहेगी। ऐसी हालत में निरपराध कैसे होंगे ?"
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'अब मैं तुम्हारे सवाल का उत्तर दूँ तो शायद वह तुम्हें ठीक न जँचे। पूरी तहकीकात होने तक शान्त रहकर सब देखते रहो, अप्पाजी । उतावलेपन से काम न होगा।"
"वैसा ही सही, माँ!"
फिर न्याय-विचार के लिए निश्चित दिन की अवधि विमादि ने सम्बन्ध में कुछ नहीं कहा। कैदियों के आने के दूसरे ही दिन रानी लक्ष्मीदेवी, राजकुमार नरसिंह, धर्मदर्शी, तिरुवरंगदास, हुल्लमय्या, मायण और राजमहल के परिवार के रक्षकदल के लोग, सभी राजधानी पहुँचे।
रानी तथा राजकुमार का शुभ-स्वागत बड़े समारम्भ के साथ सम्पन्न हुआ। रानी लक्ष्मीदेवी ने सोचा कुछ और था, मगर हुआ कुछ और।
पहली बार राजकुमार के साथ राजमहल की ड्योढ़ी पर जिस तरह का भावभीना स्वागत हुआ था, उसी तरह का स्वागत अब भी हुआ। स्वयं रानी लक्ष्मीदेवी को विश्वास नहीं हो रहा था ।
उसे और राजकुमार दोनों ही के लिए एक अलग से विश्रामगृह तैयार था ही, साफ-सुथरा सजा हुआ। धर्मदर्शी के लिए राजमहल से लगे, किन्तु राजमहल के बाहर, निवास की व्यवस्था अलग से की गयी थी।
राजपरिवार के पहुँचने के दिन कुशल प्रश्न मात्र हुए। यात्रा की थकावट मिटाने के लिए सबके लिए आराम करने की समुचित व्यवस्था की गयी थी।
दूसरे दिन शान्तलदेवी ने रानी लक्ष्मीदेवी तथा हुल्लमय्या से अलग-अलग बातचीत करके सूचना संग्रह की। मायण से भी अलग मिलीं, उससे भी जानकारी लीं। हत्या के षड्यन्त्र की खबर मिलते ही तलकाडु के राजमहल में किस तरह का सन्देह उत्पन्न हुआ और वहाँ के व्यवस्थापक अधिकारी से और रानीजी से हुई बातचीत तथा उस सारे सन्निवेश को एवं अगस्त्येश्वर अग्रहार की घटनाएँ आदि अन्यान्य विषयों को मायण ने विस्तार से बताकर, यह भी बताया कि वे खेल दिखानेवाले और कोई नहीं, हमारे चाविमय्या और चट्टला हैं। इस विचारणाकार्य के पूर्ण होने तक वे उसी भेस में रहेंगे और अपरिचितों की तरह बने रहेंगे। उधर ही अगर उनके बारे में रहस्य खुल
332 :: पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार