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"कितनी देर हो गयी ! अप्पाजी की भूख मिट गयी होगी।" कहती हुई बेटे की ओर देखा।
"अगर भूख मिट जाती तो मैं दूसरे काम पर चला जाता अब तक। जल्दी आओ, माँ।" विनयादित्य बोला।
शान्तलदेवी हाथ-पैर धोकर जल्दी ही लौट और आसन पर जा बैठौं । वास्तव में उन्हें भी भूख लग रही थी। दोनों मौन हो भोजन करने लगे।
बीच में अचानक विनयादित्य ने बात छेड़ी, "माँ, कैकेयी और मारीच रामायण के युग तक ही के लिए सीमित नहीं रहे हैं, ऐसा लगता है।"
"अचानक कैकेयी और मारीच की बात क्यों मन में आयी, अप्पाजी? आज गुरुजी ने उनके बारे में बताया है क्या ?"
"नहीं, यह कथा बहुत समय पहले ही बता दी थी। आज पता नहीं क्यों दुबारा याद आ गयी। उस जमाने में एक कैकेयी और एक मारीच के कारण क्या सब हुआ। आज देखिए, ऐसी अनेक कैकेयी और ऐसे अनेक मारीच नजर आ रहे हैं।"
"अप्पाजी, भोजन करते वक्त अच्छे लोगों की बात याद किया करो। बुरों की बातें क्यों ?" कहकर उसकी बात को वहीं रोक दिया। भोजन समाप्त किया। बाद को यही सोचती हुई अपने विश्रामागार की ओर गयीं कि अभी उसके दिमाग में वहीं वात चल रही है। किसी तरह से यह बात उसके दिमाग से दूर करनी ही होगी।
विनयादित्य ने सोचा न था कि माँ इस तरह उसकी बात पर रोक लगा देंगी। वह भी अचकचा गया, और मौन ही भोजन समाप्त कर, अध्ययन करने चला गया। फिर दोनों शाम के भोजन के वक्त मिले। तब भी मौन ही भोजन पूरा हुआ। परन्तु दोनों के मन में एक ही विचार को लेकर अलग अलग भाव उठ रहे थे। इसके बाद के भी दो-एक दिन इसी तरह कटे 1 वे अपने-अपने काम की ओर ध्यान देते और सिर्फ नाश्ते तथा भोजन के समय मिलते । मौन ही नाश्ता और मौन हो भोजन। इसी तरह कुछ दिन बीत गये। अनन्तर एक दिन सुबह कैदी राजधानी में आ पहुँचे। मायण की सूचना के अनुसार उन खेल दिखानेवालों को अलग-अलग कमरों में रखा गया था। शेष सभी को एक दुसरे भूगर्भ कमरे में चन्द रखा गया था। पट्टमहादेवी को समाचार मिला। उन्होंने सभी बन्दियों को देखा 1 पूर्वसूचित खेल दिखानेवाले दोनों ने अपने को अव्यक्त ही रखा । शान्तलदेवी ने कुछ कहा नहीं। साथ में विनयादित्य रहा, अतः वह मौन ही रहीं।
"दो गाड़ियों में भरकर कैदियों को लाना पड़ा तो तलकाडु में भारी प्रमाण में ही षड्यन्त्र की योजना हुई होगी न, मौ?" राजमहल लौटने के बाद विनयादित्य ने पूछा।
_ "इनमें कौन अपराधी है, कौन नहीं ? इस षड्यन्त्र में वास्तव में ये शामिल थे
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 331