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________________ जाता तो इसका दूसरा अर्थ लगाया जाता। यही सोचकर उन्हें कैदियों की तरह हो यहाँ लाया गया। सब इन बातों को गुप्त रीति से उन्हें बता दिया गया है । यह बात भी मायण ने विस्तारपूर्वक निवेदन की। इसके बाद महाप्रधान गंगराज, हुल्लमय्या. भण्डारी मादिराज, रानी लक्ष्मीदेवी, तिरुवरंगदास, मायण और विनयादित्य की बैठक हुई। इन कैदियों को गिरफ्तार करनेवाले हुल्लमय्या से ही इनके विषय में पूछताछ करवाकर, "इन कैदियों के बारे में विचार अभी किया जाए या युद्ध-क्षेत्र से सन्निधान के पधारने के बाद?"शान्तलदेवो ने सलाह माँगी। "युद्ध की गतिविधि क्या होगी, यह कहा नहीं जा सकता। पट्टमहादेवीजी ती उपस्थित हैं ही। इसलिए अभी न्याय-विचार कर लेना अच्छा है।" गंगराज बोले। "प्रधानजी के कहे अनुसार न्याय-विचार अभी हो जाना चाहिए। न्याय-पीठ पर प्रधानजी, भण्डारी मादिराज, सुरिंगेय नागिदेवण्णाजी रहें और न्याय-विचार करें। नागिदेवण्णाजी दण्डनायिका हरियलदेवी को यादवपुर से कल ही सूर्यास्त के बाद लिवाकर आये हैं। हरियला के अभी प्रसव के दिन हैं।" शान्तलदेवी ने कहा। गंगराज बोले, "न्याय-पीठ पर पट्टमहादेवीजी का रहना ही अच्छा है।" "इस प्रसंग में इस बात पर जोर न डालें।" कहकर यह बात पट्टमहादेवी ने बहीं समाप्त कर दी। 'जैसी इच्छा। पट्टमहादेवीजी ने एक शुभ समाचार भी दिया है । हरियल देवीजी के इस द्वितीय गर्भ से लड़का हो, यह हम सबकी मनोकामना है।" गंगराज बोले। "राजमहल के बन्धुवर्ग में अनेक लड़के पैदा न हों, प्रधानजी। यह व्यावहारिक नहीं। मेरी बात आप समझते हैं। फिर भी हमारी हरियला की पहलो सन्तान लड़की हुई, अत: अब लड़का हो यह मेरी भी अभिलाषा है।" शान्तलदेवी ने कहा। "राजकुमारी हरियलदेवी की इच्छा जाने बिना इस बारे में बात करना उचित नहीं होगा।' मादिराज बोले। "भण्डारीजो का कथन ठीक है। हरियला की इच्छा जानकर हम भी वैसे ही असीसें। अच्छा, यह तो बाद की बात हुई । इस न्याय- विचार को अब कल से ही शुरू कर दें।" शान्तलदेवी बोली। "जो आज्ञा।" "इस न्याय-विचार का संयोजन प्रधानतया हुल्लमय्याजी करेंगे। मायण उनका सहायक होगा।" न्याय-विचार दूसरे ही दिन आराम्भ हो गया। बात राजमहल के व्यक्तियों की हत्या से सम्बन्धित होने के कारण यह खुले आम न होकर सीमिति अधिकारी वर्ग के समक्ष राजमहल के अन्दर ही हो-यह गंगराज ने सुझाया था। इसलिए यह सभा पट्टमहादती शान्तला : भाग। चार :: 333
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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