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________________ "क्या समाचार है?'' शान्तलदेवी ने प्रश्न किया। "भण्डारीजी को तलकार्ड से समाचार मिला है कि रानीजी और राजकुमार राजधानी के लिए रवाना हो चुके हैं।" हरकारे ने कहा। "एसा ! क्या कारण है?" "इतनी खबर सन्निधान से निवेदन कर आने को कहा गया, सो चला आया।" हरकारा बोला। "ठीक है। मेरी पालकी यहाँ भेज दो। स्थपतिजी, गणेशजी को इस मूर्ति के बारे में आप भी सोचें और मैं भी सोचूंगी।" शान्तलदेवी ने कहा। राजमहल का दक्षिणी द्वार निकट था, इसलिए वहाँ जो पालकी थी, वह जल्दी पहुँच गयीं। शान्तलदेवी उसमें सवार हुईं और यह सोचती हुई निकली कि इस तरह अचानक आने का शायद यह कारण हो सकता है कि वहाँ शत्रुओं की कुछ कारवाई हो रही हो । राजमहल में पहुंचते ही उन्होंने भण्डारी वित्त-सचिन मादिराज को बुलवा भेजा। मायण ने पत्र में मोटे तौर पर सारी स्थिति बतायी थी। गुप्तचर के हाथ जो पत्र आया था, उसे पढ़कर शान्तलदेवी ने पूछा, "आपने पत्र को पूरा पढ़ा है ?!' "पढ़ा है। "यह सब किसका काम है? इस पर आपकी क्या राय है?" "मुझे लगता है कि यह सब चोलों का ही काम है। क्योंकि गजधानी में और तलकाडु में जो खबर है, लगता है उन दोनों का मूल एक ही है। यह काम राजधानी और तलकाडु के लोगों में भेद-भाव पैदा करने के लिए किया गया है, ऐसा प्रतीत होता "चट्टला-चाविमय्या का सही परिचय मायण ने क्यों नहीं दिया, यही एक समस्या हो गयी है। एक काम तो अच्छा हुआ। रानी लक्ष्मीदेवी और राजकुमार का राजधानी में आना ठीक रहा। मन में यदि कोई सन्देह हो तो उसका निवारण हो सकेगा।" "इस वक्त महासन्निधान भी यहाँ होते तो बहुत अच्छा होता!" "महासन्निधान के लौटने पर उन्हें सब मालूम हो ही जाएगा।" "परन्तु खुद विचारणा सभा में भाग लेने से जो विचारधारा बनती है वह और दूसरों से सुनी-सुनायी बातों से बननी वाली विचारधारा-दोनों में अन्तर होता है।" "तो क्या इस इस विचारणा-सभा को उस वक्त तक के लिए स्थगित करना होगा?" "महासन्निधान के पास पत्र भेजकर बुलवाएँ । यदि वे आने को राजी हों तो...'। "सन्निधान रणक्षेत्र से लौटेंगे नहीं, कारण चाहे कुछ भी हो।" 322 :: पट्टमहादेवी शानना : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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