SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ "आप कुछ भी कहिए, वे मतीय विषयों में, धर्म के विषयों में, बहुत जिद्दी हैं। मुझे तो ऐसा ही लगता है।" तिरुवरंगदास ने कहा। ___ "आप जिद्दी नहीं हैं? आपके माथे पर का यह लांछन ही बता देता है। यह मनुष्य का स्वभाव है। जिस पर विश्वास होगा उसी का अवलम्बन करना सहज है। फिर भी मत-सहिषाता में वे सबसे आगे हैं।" "मुझे क्या मालूम. मुझे जैसा लगा मैंने बता दिया। आपका अनुभव मेरे अनुभव से भी अधिक व्यापक है। जितना आप उन्हें समझती हैं, उतना मैं कैसे समझ सकता "सच है। कल देखिएगा. ने किस तरह आप सभी लोगों से बढ़कर श्रीवैष्णव के प्रति श्रद्धा-भक्ति से आचरण करेंगी। यह सम्पूर्ण मन्दिर उन्हीं के निर्देशन में बना है, सो तो आप जानते ही हैं।" "फिर भी यह आश्चर्य है कि मूल विग्रह बनाने के लिए दोषयुक्त शिला का प्रयोग किया गया। इस मन्दिर का पुण्य प्रभाव है, आचार्यजी का पुराकृत पुण्य भी रहा। यह बात प्रकट हुई और नयी मूर्ति बन रही है।" "ऐसा है ! जहाँ पट्टमहादेवी हों, वहाँ ऐसा होना सम्भव ही नहीं है न!" पद्मलदेवी ने कहा। "पर अब हुआ है न ! विकृत उदर की वह मूर्ति ज्यों-की-त्यों खड़ी है। चाहें तो देख आइए।" लक्ष्मीदेवी ने कहा। "हो सकता है। आखिर मनुष्य की हैं, कभी-कभी दृष्टि-दोष के कारण ऐसा भी हो जाता है।" "कोई एक भिति-चित्र या विग्रह ऐसा होता तो कोई चिन्ता नहीं थी। मूल पूर्ति ही ऐसी हो तो इसे केवल दृष्टिदोष कैसे मान लें? मानना कठिन है।" तिरुवरंगदास ने कहा। "आपकी क्या राय है?" चामलदेवी ने प्रश्न किया। "पिताजी, अब ये सारी बातें क्यों? वह तो निर्णीत है। उसके बारे में चर्चा न करें। सुबह महासन्निधान ने जो कहा सो भूल गये?" लक्ष्मीदेवी ने उस बात को वहीं समाप्त कर दिया। तिरुवरंगदास उठ खड़ा हुआ। "रानीजी को लेकर एक बार सिन्दगेरे आइएगा।'' पद्मलदेवी ने कहा। "हमें कहाँ ऐसी स्वतन्त्रता? अब तो रानीजी को ही चाहिए कि हमें ले जाएँ। इसलिए उन्हीं से कह दीजिएगा। अब मुझे आज्ञा देखें।" तिरुवरंगदास वहाँ से निकल पड़ा। रास्ते में जाते हुए वह सोचने लगा, 'रानी पद्मलदेवी बिना दाँत के साँप-सी बन पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार :: 31
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy