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________________ "सो तो सन्न हैं । इस तरह के औचित्य-अनौचित्यों को हमारी पट्टमहादेवी जी अच्छी तरह समझती हैं। उन्होंने उचित व्यवस्था की होगी।" "सो ठीक है। वे सदा ही दूर की बात सोचती हैं। ऐसा क्या है जो आप नहीं जानी ? आपके जमाने में भी राजमहल में उनका बहुत प्रभाव रहा, सो तो आप जानती ही हैं न? तब कहना ही क्या है? आपका अनुभव भी कम है क्या?" अनुभव किसी का कुछ भी हो, दैवेच्छा के सामने किसी का कुछ नहीं चलता। हम सब उसके सामने तिनके के बराबर हैं।" "ऐसा कहेंगी तो कैसे चलेगा? मानव का तन्त्र ईश्वरेच्छा को भी बदल सकता 'आप जैसे देवभक्त के मुंह से ऐसी बात सुनकर आश्चर्य होता है! आपको मालूम नहीं, ईश्वरेच्छा को बदलने के इरादे से हमारी माँ ने पता नहीं कौन-कौन से तन्त्र किये। फिर भी वह बदली नहीं। यदि हमारी इच्छा दूसरों को हानि पहुँचाने की हो तभी तो हम तन्त्र रचते हैं। उस तन्त्र के फल को हम तीनों बहनों ने भोगा। हम स्वयं आपस में झगड़ पड़ी। सब झेल चुकने के बाद अक्ल आयी। परन्तु हमें अपना सर्वनाश कर लेने के बाद ही अक्ल आयी। आपकी बेटी बड़ी भाग्यवती है। अगर उसे अपने भाग्य को ज्यों-का-त्यों बनाये रखना हो तो इन मन्त्र-तन्त्रों का आश्रय न लें। हमारे महाराज पट्टमहादेवी से कितना प्रेम करते हैं सो आप लोगों को मालूम नहीं। स्वयं मतान्तरित होने पर भी पट्टमहादेवी ने मतान्तर स्वीकार नहीं किया, इसलिए महाराज उनसे असन्तुष्ट हैं, ऐसा विचार किसी का होगा तो वह उसकी भूल होगी। पट्टमहादेवी जी भी महाराज से उतना ही प्रेम करती हैं। महाराज की सभी इच्छाओं को पूर्ण करती आयी हैं। अपने पारिवारिक अनुभव की पृष्ठभूमि में हम विचार करती रहीं कि पोय्सल राजा एक-पत्नीव्रत का ही पालन करें। इसीलिए हमने बम्मलदेवी और राजलदेवी की रानी बनने से रोकने का प्रयत्न भी किया, परन्तु हम सफल नहीं हुए। स्वयं पट्टमहादेवी जी ने हो आगे बढ़कर यह विवाह करवाया। शायद आपकी बेटी का विवाह भी उनको सम्मति से हुआ है। उन्हें हम बाल्य-काल से जानती हैं। उनके मन में कभी खोटी भावनाएँ आती ही नहीं। क्षमा उनका महान् गुण है। उनके विरुद्ध कोई भी तन्त्र नहीं चल सकता । न चलेगा। उनके आश्रय में किसी को कभी भी बुराई नहीं होगी।" चामलदेवी ने कहा। "आपने कहा कि आपको पाताजी ने कोई तन्त्र किया, सो क्या किया था जान सकती हूँ?" लक्ष्मीदेवी ने पूछा। "क्या रखा है उसमें ? अवश्य जान सकती हैं। वह एक बड़ा किस्सा है। फुरसत से कहना होगा। उत्सव आदि कार्यक्रम समाप्त हो जाएं, बाद में बताऊँगी। उन सब बातों को जाने रहना अच्छा है।" 30 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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