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" इसमें क्या? बहुत ही उत्तम इच्छा है। मैंने सोचा था कि नमक मिर्च खटाई आदि की इच्छा होगी। ठीक है, उसकी व्यवस्था की जाएगी। पर जो भी हो सोमान्तोन्नयन संस्कार के बाद ही । "
"तब तक प्रतीक्षा करनी पड़ेगी ?"
"
'कब तक की कल्पना करती रही हो ?"
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'यह मुझे मालूम नहीं।"
"देखो, तुम्हारे पिताजी ब्राह्मण हैं। ब्राह्मण कन्या जब प्रथम गर्भधारण करती है तो चौथे या छठे महीने में सीमन्त- संस्कार करने का विधान है। अब यह चौथा महीना है न ? अपने पिता से पूछो। एक अच्छा मुहूर्त निकाल दें। इस राजमहल की प्रतिष्ठा के अनुसार, रानी पद की योग्य रीति से मनाएँगे। बाद को यदुगिरि हो आने की व्यवस्था कर देंगे।" शान्तलदेवी ने अपना निर्णय सुना दिया।
लक्ष्मीदेवी को कुछ कहने के लिए सूझा नहीं। अपनी मौन सम्मति जता दी। शान्तलदेवी ने घण्टी बजायी ।
मुद्दला अन्दर आयी। शान्तलदेवी जाने को तैयार हो उससे बोलीं, "जाकर रानीजी के पिताजी को यहाँ बुला ला!" कहकर चली गयीं।
"
तिरुवरंगदास राजमहल के ही किसी कोने में रहता था। उसके आने में विलम्ब नहीं हुआ। लक्ष्मीदेवी ने सब बात कह सुनायी। कहा, 'अब सीमन्त के लिए मुहूर्त निश्चित कर बताने की जिम्मेदारी हम पर हैं। "
"यह कोई बड़ा काम नहीं। पर... उसके समाप्त होने पर जाने की बात पट्टमहादेवी ने जो कही वही कुछ चिन्ताजनक है।" तिरुवरंगदास ने कहा ।
"हो आना- कह देना तो पुरानी रीति है। इसके माने यह नहीं कि फिर लौटना "नहीं होगा ।" लक्ष्मीदेवी ने कहा 1
"ये सब बातें तुम्हारी समझ में नहीं आएँगी। तुम वहाँ कितने दिन रहोगी ? यदुगिरि में ही रहोगी या यादवपुरी में ? इस सम्बन्ध में कुछ पूछा नहीं? इस स्वीकृति में जो बात होनी चाहिए उससे भिन्न कुछ और है, ऐसा मुझे लगता है। हमारे साथ ऐसे लोगों को भेज सकते हैं जिनसे हमारी अनबन हो ।"
" नाहे कोई जाएँ। हमें उनके कहे अनुसार तो करना नहीं है। यहाँ से निकलने के बाद हम पूरी तौर से आजाद हैं।" उसके कहने में एक स्पष्ट मनोभाव था । तिरुवरंगदास भी यहीं चाहता था कि अपनी बेटी 41 ऐसा ही निर्णय हो। इसके तीन-चार दिन बाद एक अच्छा मुहूर्त निश्चित किया गया। बड़ी धूमधाम के साथ सीमन्तोन्नयन संस्कार मनाया गया। राजधानी की वयोवृद्ध सुमंगलियों ने रानी लक्ष्मीदेवी को असीसा और कहा कि पुत्र ही जन्मे। जितनी श्रद्धा और लगन के साथ अपनी बेटी के लिए कर सकती थीं, उतनी ही लगन से शान्तलदेवी ने सीमन्त-संस्कार सम्पन्न
कराया ।
पट्टमहादेवी शान्तला भाग चार: 205