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________________ कोई काम करें तो इससे उनका अगौरव न होगा?" 'तो..." "पूछने पर वे जो कहेंगे वहीं करना पड़ेगा।" "इसलिए न पूछे, यही ठीक है, यही आपकी राय है?" "निर्णय सन्निधान का है। इसलिए किसी और से पूछने जाना उचित नहीं होगा। इसीलिए केतपल्लजी ने हमसे जो निवेदन किया, उस सम्बन्ध में हमने सन्निधान के समक्ष कुछ नहीं कहा।" "ताकि कोई आक्षेप हो तो वह सन्निधान पर ही रहे, इसीलिए?" "यह सन्निधान ही सोचें।" "छोटी रानी क्यों सुदर्शन चाहती थीं?'' बिट्टिदेव ने उसकी ओर दृष्टि फेरी। लक्ष्मीदेवी सब दृष्टियों से सुन्दर है। उसकी नाक के रन्ध्र मात्र प्रश्नसूचक चिह्न-से थे। यही नाक दूसरों की दृष्टि आकर्षित करती थी। अब वह प्रश्नसूचक होने के साथ कुछ व्यंग्यपूर्ण लग रही है। क्षणभर उसने शान्तलदेवी की ओर देखा। "कोई हर्ज नहीं। विषय कितना ही रहस्यपूर्ण हो, पट्टमहादेवीजी के सामने निःशंक हो कह सकती हैं।" बिट्टिदेव ने बढ़ावा दिया। "हमारे यहाँ आने के बाद मालूम हुआ कि यहाँ वेलापुरी के मन्दिर से भी भव्य और विशाल शिवालय निर्माण कराने की तैयारी हो रही है।" "किसने कहा: "मिहिने . "सुना कि मेरे पिताजी से कहा गया है।" "क्या कहा है?" "वेलापुरी के केशव मन्दिर से भी अधिक सुन्दर शिवालय यहाँ बन रहा है। सन्निधान ने उसको स्वीकृति दे दी है, यह बात भी मालूम हुई है। बेचारे डरते हुए मेरे पास भागे-भागे आये और यह खबर मुझे सुनायी।" "उन्हें डर क्यों लगा?" "वैष्णव राजा का धन शिवालय के निर्माण पर व्यय हो तो लोगों की भावना क्या हो सकती है? "यहाँ महाराज का धन नहीं, बनवाने वाले केतमल्लजी का धन लगेगा।" "सन्निधान ने स्वीकृति दी, इसके अलावा यदि शंकुस्थापना भी सन्निधान करेंगे तो आगे क्या होगा?" "यह पोय्सल राज्य आचार्य का जन्मदेश चोलदेश नहीं है। जिस विषय को तुम नहीं समझती हो उसे लेकर अपने दिमाग को खराब करने की कोई जरूरत नहीं।" कहते हुए विट्टिदेव ने घण्टी बजायी। रेविपय्या किवाड़ खोलकर अन्दर आया। "रेविमय्या, वेलापुरी के विजयोत्सव के बाद यहाँ के शिवालय की शंकुस्थापना पट्टमहादेवो शान्तला ; भाग चार :: 111
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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