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________________ "सन्निधान के हाथ से यह कार्य सम्पन्न हो।" कुछ प्रार्थना के स्वर में कहा केतमल्ल ने। "किस मन्दिर का निर्माण हो रहा है?" लक्ष्मीदेवी बीच में बोली। "केतमल्लजी जिसकी आराधना करते हैं, उस भगवान् का।' 'शान्तलदेवी ने कहा। "हाँ, शिवालय।' केतपल्ल बोले। "शिव-मन्दिर की शंकुस्थापना और उसे श्रीवैष्णव करें, यह कैसे सम्भव है ?" लक्ष्मीदेवी ने तुरन्त पूछा। "पोय्सल राज्य में यह सम्भव है।" शान्तलदेवी ने कहा। "सन्निधान ऐसा करें, ठीक है। लेकिन जब सन्निधान आचार्यजी के साथ हों, तब करें तो आचार्यजी को इससे कितनी न्यथा होगी, यह विचारणीय नहीं है?" लक्ष्मीदेवी बोली। "हाँ, विचारणीय तो है । क्यों न हम आचार्यजी से ही पछ लें? केतमल्ल जी, वेलापुरी प्रस्थान करने से पहले हम अपना निर्णय सूचित कर देंगे। ठीक है न?" बिट्टिदेव ने कहा। "जो आज्ञा।'' केत्तमल्ल ने कहा। "सन्निधान इस विषय पर जिज्ञासा के लिए मौका न देकर, स्वीकार कर लें तो अच्छा है, ऐसा मुझे लगता है।" 'शान्तलदेवी ने कहा। "अन्तिम निर्णय तो हमारा है हो। फिर भी जब वे यहाँ मौजूद हैं, तो एक बार पूछ लें। इसमें बुरा क्या है?" बिट्टिदेव ने कहा। शान्तलदेवी बात को आगे बढ़ाना नहीं चाहती थीं। "सन्निधान की मर्जी," कहती हुई उन्होंने घण्टी बजायी। रेविमय्या द्वार खोलकर अन्दर आया। केतमल्ल प्रणाम कर चले गये। बाकी लोग बैठे रहे, इसलिए रेविमय्या किवाड़ बन्द कर फिर बाहर आ गया। "क्यों? पमहादेवीजी को कुछ असन्तोष-सा...?" बिट्टिदेव ने पूछा। "मुझे असन्तोष क्यों? फिर भी इस बात पर सन्निधान कुछ गहराई से सोचें तो अच्छा हो, यह मेरी भावना है।" "इसमें सोचने के लिए क्या है?" "सन्निधान यदि आचार्यजी से पूछे और वे मना कर दें, तब आगे क्या होगा?" "वे कभी ऐसा नहीं कहेंगे।" “मान लीजिए, कहा, तब?" "हमारे निर्णय में वे बाधा नहीं डाल सकेंगे।" "नहीं डाल सकेंगे, सच है। परन्तु उनसे पूछने के बाद उनकी राय के विरुद्ध 110:: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग चार
SR No.090352
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages458
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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