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________________ 'कहो!" शान्तलदेवी बोली। "यह बात महारानी पद्मलदेवीजी के कानों में न पड़े।" धीमे स्वर में रेविमय्या ने कहा । " सो क्यों ?" शान्तलदेवी ने पूछा। "लगता है कि महामातृश्री ने उनसे यह बात कही थी 'पट्टमहादेवी बहुत उदारहृदय हैं। उनकी उदारता से बाद में वे तकलीफ में न पड़ जाएँ। इस तरह न हो - ख्याल रखें'- यों महामातृश्री ने पग्रलदेवीजी को सूचित भी किया था। इसलिए यही बेहतर है कि बात उनके कानों तक न पहुँचे।" रेविमय्या ने कहा । " तो मतलब यह हुआ कि अब इसी क्षण से बात किसी के मुँह से न निकले, छेड़-छेड़कर पूछना चाहेंगे, पूछेंगे - 'क्या बातें हुई ? यह सन्दर्शन किसलिए था,' आदि-आदि। क्योंकि सभी को यह मालूम होगा हो कि आप लोग यहाँ आये थे इसलिए वे पूछेंगे ही। अब वे कुछ और ही पद्मलेदवी बनी हैं, फिर भी सावधान रहना अच्छा है। रेविमय्या के मुँह से बात निकलेगी तो उसका विशेष अर्थ होगा। अगर कोई पूछे तो सभी का उत्तर एक ही होना चाहिए | आसन्दी प्रदेश, जिसे हमें दिया गया है वहाँ जाकर रहने और वहाँ से चालुक्यों की गतिविधियों पर दृष्टि रखे रहने के विषय में निर्णय लिया गया है, यही उत्तर होना चाहिए। हम भी यही कहेंगे।" शान्तलदेवी ने सूचित किया । " जैसा व्यापका आदेश बम्मलदेवी ने कहा । "रेविमय्या ! चट्टला से कहो कि राजकुमारियों को भेंट देने के लिए मंगलद्रव्य ले आयें। बैठिए, चट्टला को आ जाने दें।" शान्तलदेवी ने कहा । "यह काम यहाँ मन्त्रणागृह में क्यों ? अन्दर ही बुला ले जाएँ तो अच्छा होगा न?" बिट्टिदेव बोले । +1 44 शान्तलदेवी ने सशंक दृष्टि से विट्टिदेव की ओर देखकर कहा, "जो आज्ञा, आइए । राजकुमारियों के लौटने तक दण्डनाथजी यहीं रुकेंगे।" शान्तलदेवी बाहर निकली। बम्मलदेवी और राजलदेवी दोनों ने उनका अनुसरण किया। "रेविमय्या ! उपाहार तैयार हो तो हम और दण्डनाथजी दोनों आ जाएँगे।" बिट्टिदेव बोले । रेविमय्या चला गया। मंचि दण्डनाथ रेविमय्या के चले जाने के बाद हिलते परदे की ओर देखने लगे । बिट्टिदेव ने कहा, "आपको आश्रय दिया. सो हमारे लिए एक बन्धन-सा हुआ न दण्डनाथजी ?" 4 'आपको बन्धन में डालना कदापि हमारी इच्छा नहीं। बम्मलदेवी एक सुदृढ़ मनस्क स्त्री हैं। उनका विश्वास है कि सन्निधान का मन उनके प्रति पट्टमहादेवी शान्तला भाग तो :: 75
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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