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________________ बम्मलदेवी ने पूछा। "न, न, कभी नहीं। अपने विरुद्ध आचरण करनेवालों के प्रति भी वे कभी अप्रसन्न नहीं होती थीं, हाँ, उनकी दुर्बुद्धि को दूर करने के लिए भगवान् से प्रार्थना अवश्य किया करती थीं। कई बार उन्होंने राजलदेवी के व्यवहार से अत्यन्त तृप्त हो अपनी पसन्दगी को व्यक्त किया है। बच्चों की देखभाल करने की उनकी गति को देखकर वे बहुत ही सन्तुष्ट हुई थीं। अपने पुत्र की प्राणरक्षा करने में तत्पर आपके प्रति गहरी कृतज्ञता की भावना भी उन्होंने कई बार प्रकट की। पट्टमहादेवी बनने की प्रबल इच्छा से पट्टमहादेवी बनकर अपने ही अविवेक के कारण पालदेवी ने अपने सौमांगल्य को खो दिया। इस कटु अनुभव की पृष्ठभूमि पर भी आपको इस क्रिया ने उनके दिल पर कोई अमिट प्रभाव नहीं छोड़ा, बल्कि आपके व्यक्तिस्य को ऊँचा उठाया है। केवल एक ही डर उनके दिल में समाया था, वह यह कि सौत हो तो जीवन बरबाद हो जाएगा। सौत होने पर भी सुखी और सन्तुष्ट रह सकते हैं, इस स्थिति से वे अपरिचित थीं। इस क्षणिक भय को बात से उनका असमाधान व्यक्त हो-ऐसा आप न समझें।" बात वहीं रुक गयी। किसी को कुछ न सूझा कि क्या कहे। थोड़ी देर मौन बना रहा। कब तक मौन बैठे रहें ?, आखिर शान्तलदेवी ने ही कहा, "पल्लव राजकुमारीजी, आपने अपने हृदय की बात स्पष्ट कर दी है। आपके अभिभावक मंचि दण्डनाथजी ने आपके हार्दिक विचारों के वाहक बनकर आप लोगों के प्रति अपने दायित्व को हम पर डाल रखा है। इसमें समाधान की बात यह है कि इस तरह की खुले दिल की बातों से किसी के मन में कैसी भी कड़आहट उत्पन्न नहीं हुई। यह आपस में एक-दूसरे को अच्छी तरह समझने में बहुत सहायक हुआ। मैंने अपने विचार छिपाये नहीं। महामातृश्री को मैंने जो वचन दिया है, उसी प्रकार मैं उसका पालन करूँगी। अब सन्निधान ही इस पर निर्णय करें। वे निर्णय करने के लिए चाहे कुछ समय और ले लें। जब आप लोगों ने यहाँ आना चाहा तो उन्होंने कहा, 'यहाँ क्यों, यादवपुरी में क्यों नहीं?' उन्हें तब मालूम नहीं था कि मैंने ही यह बात कही थी। वहीं वे अपना निर्णय बतावें । विचार करने और अच्छी तरह सोच-समझने के लिए कुछ समय और मिलेगा। यह खूब सोच-समझकर निर्णय करने का विषय है। अचानक रोमांचित होकर उद्रिक्त हो जाने पर तुरन्त तृप्ति पाने की जल्दी न उचित है, न अच्छी है। इस तरह रोमांच हो तो उसकी जड़ें खूब जमी होनी चाहिए। ठीक है न दण्डनाथ जी?" "जैसी मर्जी" कहकर मंचि दण्डनाथ उठ खड़े हुए। साथ ही राजकुमारियाँ भी। "एक निवेदन है," रेविमय्या ने कहा। 74 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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