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________________ आसक्त है। ऐसा क्यों हुआ, मैं नहीं जानता। उसने तो स्वयं को सन्निधान के चरणों में समर्पित कर दिया है। उसके सम्पूर्ण अन्तरंग को छानकर ही अन्स में मैंने सन्निधान के समक्ष निवेदन किया है। बस यही विनती है कि कृपा करें।" विनत हो मंचि दण्डनाथ ने निवेदन किया। इतने में रेविमय्या ने आकर कहा, "सब तैयार है। स्वयं पट्टमहादेवी ने ही व्यवस्था की है। उनकी विनती है कि सन्निधान एवं दण्डनाथजी शामिल हो।" दोनों भोजनालय की ओर चले गये। उपाहार के समय शान्तलदेवी ने कहा, "चिण्णम दण्डनाथ युद्धक्षेत्र में दिवंगत हुए, यह खबर जब राजधानी में पहुंची कि ठीक इसी समय उनकी पत्नी चन्दलदेवी ने पुत्र को जन्म दिया और इसी वजह से उनका भी स्वर्गवास हो गया। मरने से पहले उन्होंने उस शिशु को महामातृश्री की गोद में डाल दिया था। उस घटना को पन्द्रह वर्ष बीत गये। उनकी इच्छा के ही अनुसार उसे सन्निधान के ही नाम से नामकरण किया गया। उसी कुमार बिट्टियण्णा से विवाह करने के लिए कन्याएँ आने लगी हैं। आप विश्वास करेंगी? आप लोगों में जलनीत करने के थोड़ी ही देर पहले कन्या के भाई ने आकर विवाह का प्रस्ताव पेश किया, यह कैसी आश्चर्य की बात है? दोनों का एक नाम होना काकतालीय है या विवाह का प्रस्ताव काकतालीय है? नाम भी वही और प्रस्ताव भी उसी तरह का। सो एक ही दिन हमारे सामने" कहकर हँस पड़ीं। फिर उसी बात को विस्तार से बताया, "उस लड़के को महामातश्री ने मेरी गोद में डाल दिया और कहा कि इसे अपने बच्चे की तरह पालना । वास्तव में वह मेरे प्रथम पुत्र के समान है। तब सन्निधान के लिए भी वह पुत्र के समान ही हुआ न?" शान्तलदेवी हँस पड़ी। फिर हंसते हुए कहा, "पिता-पुत्र दोनों के लिए एक ही दिन विवाह का प्रस्ताव ! आश्चर्य है! ऐसा कहीं देखा है?" "हमें मालूम न था।" मंचि दण्डनाथ ने कहा। "यह सोचने की आवश्यकता नहीं कि एक-दूसरे के लिए पूरक है या मारक। मैंने तो यों ही कहा है। किस-किसके मन में किस समय कैसे विचार उठेंगे-यह किसी को मालूम नहीं होता। परन्तु यह कभी-कभी इस तरह विचित्र ढंग से भी प्रकट हो जाते हैं। आनेवाली तीज को हमारे छोटे बिट्टिगा का जन्मदिन है। उस दिन इस बात का निर्णय होगा। बेचारे कुमार बिट्टिगा को ये बातें कुछ भी मालूम नहीं। इस बारे में उसके मन में विचार उठने के पहले उसका विवाह हो जाय, यही मेरी अभिलाषा है। मेरा विचार है कि हम आजीवन परस्पर बँध गये हैं-इस धारणा के हो जाने पर उनमें परस्पर समरसता उत्पन्न होकर उनका दाम्पत्य जीवन परिष्कृत बनेगा। शायद यह एक प्रयोग हो सकता है। इस पर आप लोगों की क्या राय है?" 76 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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