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________________ कहा। स्वयं हाथ-पैर धोकर पूजा-पाठ में लग गये। फिर भोजन किया। अपने लिए जो प्रकाश की व्यवस्था थी, उसका सारा प्रबन्ध युवक के लिए करा दिया। कुछ और व्यवस्था करने के लिए अतिरिक्त साधन न थे इसलिए विश्राम करने लगे। ने दुध सा दिया। नो पीले राप्रय जस युवक का काम थोड़ा रुका, फिर, काम प्रारम्भ हो गया। ठीक सूर्योदय के समय तक मूर्ति बनकर तैयार हो गयी। स्थपति जगकर अपने प्रातःकालीन कृत्यों से निपटकर वहाँ आये। युवक उस समय तैयार मूर्ति को एक कपड़े से पोंछ-पाँछकर साफ कर रहा था। ___ "कार्य पूर्ण हो गया, बेटा?" "जी हाँ। शीघ्रता में किया है। कुछ-न-कुछ कमी रह ही गयी होगी, क्षमा करेंगे।" "इसका परिशीलन पट्टमहादेवीजी व अन्य लोग करेंगे। मेरी इसमें कोई भूमिका नहीं रहेगी। चलो, अपने नैमित्तिक कर्म से निवृत्त हो लो। मन्दिर चलेंगे।" स्थपति ने कहा। "यह मूर्ति?" "वहाँ आ जायेगी। उसके लिए व्यवस्था हो गयी है।" "तो आपने समझ लिया था कि मैं इसे पूरा कर लूँगा?" "मेरा अन्तरंग ऐसा कह रहा था।" "मैं भाग्यवान है। आप मन्दिर में पधारें। मैं आऊंगा। मेरे लिए आप प्रतीक्षा न करें।" "ठीक है। मंधणा! देखो, यह लड़का कल दोपहर से निराहार है। उसे कुछ उत्तम जलपान कराकर भेजो! सेवक आएँगे। इस मूर्ति को उनके हाथ भिजवा देना।" कहकर स्थपति मन्दिर की ओर चल पड़े। युवक भी शीघ्र पहुँचा और मूल विग्रह के पास बैठकर, उसके परिशीलनपरीक्षण के कार्य में लग गया। दूसरे किसी कार्य की और उसने कोई ध्यान ही नहीं दिया। पट्टमहादेवीजी, उदयादित्य और बिट्टियण्णा भी शीघ्र ही वहाँ जा पहुंचे। महाराज को सन्दर्भ बता दिया गया था। अन्य किसी को यह बात पता नहीं थी। शान्तलदेवी ने कहा था कि सन्निधान चाहें तो उस विग्रह को यही मंगवा लेंगे या उधर पधारेंगे तो भी ठीक है। उन्होंने कह दिया था कि इस सम्बन्ध में बही उसका निर्णय कर लें। वेणुगोपाल की मूर्ति इन लोगों के आते-आते वहाँ पहुँच गयी थी। उसे उचित स्थान पर रखा गया था, जिससे सब उसे देख सकें। देखनेवालों को यह समझने में पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 459
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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