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________________ रहे। राजमाता के निधन का समाचार बहुत जल्दी पूरी यादवपुरी में फैल गया। पिछले दिन शाम को जिस लाखों दीपों से जगमगानेवाले शामियाने के अन्दर राजकुमारी की वर्धन्ती का उत्सव सम्पन्न हुआ था, उसी स्थान पर राजमाता के पार्थिव शरीर का भीगी आँखों से लोगों ने दर्शन किया। यादवपुरी की सारी प्रजा आह भर उठी। सभी इस असहनीय दुःख का अनुभव कर रहे थे। सभी ने राजमाता को देखा न था। सबका सम्पर्क उनसे न रहा। फिर भी सबके हृदयों में पहाण्यातली एचलदेवी की एक मपित पर्ति बह गयी थी। आज सब के सब यही अनुभव करने लगे कि वह मूर्ति कहीं बहुत दूर चली गयी। उस समय गंगराज, माचण, डाकरस वहाँ उपस्थित नहीं रहे। शेष सभी अधिकारी, दण्डनाथ, मन्त्रिगण, खजांची, सेनानायक, सिपाही. सधार-सबने उपस्थित रहकर राजमाता को अन्तिम सम्मान समर्पित किया। राजमाता की अन्तिम यात्रा को राजोचित गौरव के साथ सम्पन्न किया। सारी यादवपुरी ने इसमें भाग लिया। एक सात्त्विक जीव की जीवन-यात्रा समाप्त हुई। इधर राजमहल में लोग जहाँ-के तहाँ ज्यों-के-त्यों पड़े रहे। किसी को किसी की परवाह नहीं रही। महामातृश्री की अन्तिम यात्रा के क्रिया कर्म समाप्त कर जब तक महाराज और उदयादित्य नहीं लौटे तब तक वहाँ के समस्त व्यवहार स्थगितसे रहे। बाकी सब अभी छोटे थे। माचिकब्बे को क्या हो गया? कम-से-कम सबको दिलासा देने का कार्य तो कर ही सकती थीं। वह और उनके साथ दूसरे सभी जन महामातृश्री के उस शयन-कक्ष में दीवार से सटकर पथराये बैठे रहे। किसी के बाल बिखर गये थे तो किसी के कपड़े अस्त-व्यस्त हो रहे थे। कहाँ बैठना, कहाँ न बैठना इसका ख्याल किसी को न रहा। कुमार बिट्टियण्णा शान्तला की गोद में मुंह छिपाये पड़ा रहा। बल्लालकुमार माचिकब्बे के बगल में गुमसुम बैठ गया था। छोटा बिट्टिदेव और विनयादित्य दोनों बच्चों को भूख से तड़पता देख दासब्बे उन्हें खिला-पिला और बगीचे में ले जाकर खिलाती सम्भालती रही। बिट्टिदेव के लौटने पर सब एक-एक कर उठ पड़ी। कौन किसे क्या समझाये । आपसे आप धीरे-धीरे दैनिक कार्य शुरू हो गये। सबने नहाया-धोया। भोजन करने बैठे, तब तक सूर्यास्त का समय हुआ जा रहा था। सबके लिए एक साथ भोजन की व्यवस्था की गयी थी। किसने ऐसी व्यवस्था की, किसी को मालूम नहीं। भोजनशाला में पीठ लगाये गये, पत्तल बिछा दिये गये। पानी आदि सबकी व्यवस्था की गयी। सब बैठ गये। कौन-कौन बैठे हैं. किसी ने न देखा। भोजन के बाद सब अपनी- अपनी जगह चले गये। एचलदेवी के शयन-कक्ष में दीप पिछली रात से जो जल रहा था, वह पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 47
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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