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________________ में आपके द्वारा निर्मित यह नवीन शिल्प है। आपके ही नामपर इस नमूने को स्थायित्व मिलना चाहिए।" "मुझे अपने नाम का कोई मोह नहीं है। कोई भी कला कलाकार के नाम के कारण स्थायित्व को प्राप्त नहीं करती। कलाकार की प्रतिभा को प्रकट होना हो तो सहदयतापूर्ण व्यक्तित्वों की आवश्यकता होती है। रसिक हृदय के आश्रय से कल्पना रूप लेकर साकार बन सकती हैं। पोयसल वंश उदारता से कल्पना को रूप देने के इस कार्य में अपना हाथ न बंटाता तो यह महान कार्य इस तरह साकार होकर प्रत्यक्ष न होता। उस स्थिति में मेरा कल्पना में है। पास एक पुलिया बनकर रह जाती, यों भव्य रूप धारण कर खड़ी न होती। इस वास्तुरीति को पोयसल नाम देने पर कोई अनुचित बात नहीं होगी। यह न्यायसंगत भी है। क्योंकि यह किस समय का वास्तुशिल्प है-इसका संकेत होगा और विविधतापूर्ण कला-कल्पना की प्रगति की भी घोतित करेगा। महासन्निधान इस शिल्परीति का पोयसल नाम से अभिधान करने की अनुमति देने की कृपा करें। मैं केवल व्यक्ति मात्र हूँ। राजवंश सम्पूर्ण राष्ट्र का संकेत है।" "हम कोई नाम न दें। आनेवाली पीढ़ियाँ चाहे जो नाम दें। हमारी अभिलाषा केवल इतनी ही है कि यह मन्दिर स्थायी महत्त्व का रहे, क्योंकि यह हमारे और पट्टपहादेवीजी के बीच की भिन्नता में अभिन्नतापूर्ण एकता का संकेत है।" "एक दिन का अवकाश देने की कृपा करें।" "वैसा ही हो।" "एक बार महासन्निधान नयी रानीजी के साथ पधारकर अब तक जो रचन! हुई है उसे देखने की कृपा करें।" "यह सब पट्टमहादेवीजी का दाय है।" "आपकी इच्छा को महासन्निधान पूरा करेंगे।" शान्तलदेवी ने तुरन्त कहा। बात वहीं समाप्त हुई। उस दिन के भोजन का समारम्भ सबके लिए सन्तोषप्रद रहा। दूसरे दिन मन्त्रणा-भवन में यह निर्णय भी हुआ-मूर्ति-प्रतिष्ठा के साथ-साथ हिरण्यगर्भ, तुलापुरुष की प्रतिष्ठा, विजयोत्सव समारम्भ सम्पन्न हों, इस अवसर पर महासन्निधान 'तलकाडुगोण्डा' की विरुदावली से यथाविधि विभूषित हों। राज्य के सभी ग्रामों के मुखियों के पास आमन्त्रण-पत्र भेजे गये। इसके साथसाथ ग्रामों में निश्चित दिन विजयोत्सव समारोह यथाविधि मनाने की सूचना भी दी गयो। गाँव-गाँव में विजयोत्सव के उपलक्ष्य में पोय्सल-शार्दूललांछन ध्वज फहराये जाएँ और प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्र के प्रति निष्ठावान बने रहने की प्रतिज्ञा करे-यह आदेश भी पारित किया गया। 402 :: पट्टमहादेची शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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