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________________ नये निर्मित मन्दिर में विजयनारायण भगवान की प्रतिष्ठा, हरिण्यगर्भ, तुलापुरुष, विजयोत्सव एवं विरुद-धारण-इन सब कार्यक्रमों को योग्य रीति से सम्पन्न कराने के लिए कितना व्यय होगा, कितने कार्यकर्ता चाहिए, इस सबके लिए पूर्व तैयारी होनी चाहिए---आदि बातों पर आमूलचूल विचार का निर्णय करना होगा। इस कार्य के निर्वहण और व्यवस्था आदि के लिए एक समिति उदयादित्यरस के नेतृत्व में बनायी गयी। आचार्यजी के पास निवेदन-पत्र भिजवाकर उनसे प्रार्थना की गयी कि इस मूर्ति प्रतिष्ठा के कार्य को यथाविधि शास्त्रोक्त रीति से सम्पन्न करने के लिए क्याक्या करना होगा- इस सबको करने-कराने के लिए. एक वैदिक मण्डली को बनाकर तुरन्त भिजवाने की व्यवस्था करें। पहले महाराज बल्लाल के राज-काल में दोरसमुद्र में विजयोत्सव की व्यवस्था और उससे पूर्व एरेयंग प्रभु के सिंहासनारोहण के सन्दर्भ में बड़ी दक्षता के साथ सारी व्यवस्था करनेवाले अनेक अधिकारियों को वेलापुरी बुलवाने का निर्णय हुआ। तत्काल ऐसे अनुभवी अधिकारियों के पास आमन्त्रण भी भेज दिये गये। . बल्लाल को तीनों की तीनों रानियों को स्वयं उदयादित्य द्वारा जाकर साथ जुला लाने का निर्णय हुआ और दण्डनाथ मंचियरस को तुरन्त रानी बम्मलदेवी और राजलदेवी को साथ ले आने का आदेश भेजा गया। डाकरस, बोपदेव, एचण, कुँवर बिट्टियण्णा, डाकरस के बेटे मरियाने भरत, हेगड़े मारसिंगय्या, सिंगमथ्या आदि प्रमुख व्यक्तियों को अन्यान्य कार्यो की जिम्मेदारी सौंपी गयी। स्थपति ने मूर्ति-प्रतिष्ठा के लिए मुहूर्त निश्चित कर महाराज से निवेदन किया। उसने बताया, इस दुर्मुख संवत्सर में कोई अच्छा मुहूर्त नहीं मिलने के कारण आनेवाले हेविलम्बि संवत्सर के चैत सुदी पंचमी स्थिरवार के दिन रोहिणी नक्षत्र में काटक लग्न में अभिजिन मुहूर्त के समय प्रतिष्ठा की जा सकती है। इसे आचार्यजी को सूचित कर, यदि वे स्वीकार करें, तो उसी दिन सम्पन्न किया जाय। मुहूर्त का विवरण देकर आचार्यजी के पास पत्र भेज दिया गया। उनकी स्वीकृति पाकर वही मुहूर्त निश्चित किया गया। इसके एक सप्ताह के अन्दर-अन्दर आचार्यजी से आदिष्ट होकर प्रतिष्ठा-कार्य के विधिविधान से अच्छी तरह परिचित पाँच श्रीवैष्णव आचार्य वेलापुरी आये। उनके आने का समाचार अन्तःपुर में भी पहुंचा। रानी लक्ष्मीदेवी को भी समाचार मिला। उन्हें पिताजी के आगमन की भी प्रतीक्षा थी। परन्तु सूचना मिली कि वे नहीं आये। उनमें से एक को बुलवाकर उन्होंने पूछा, "मेरे पिताजी क्यों नहीं आये?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तोन :: 403
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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