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________________ मुहूर्त हो तो मूर्तिप्रतिष्ठा के समारोह को सम्पन्न कर सकते हैं।" "सुनते हैं कि आपका ज्योतिषशास्त्र में भी अच्छा अधिकार है। आप ही एक अच्छे मुहूर्त को निश्चित कर दीजिए। आचार्यजी के पास आमन्त्रण भिजवा "ऐसा कहीं हो सकता है? राजमहल के ज्योतिषी को मुहर्त निकालना चाहिए और हमें उनका अनुसरण करना चाहिए।' "पट्टमहादेवीजी ने हमें बताया है कि आप इस शास्त्र में भी बड़े निपुण हैं, निष्णात हैं।" "उनका हृदय विशाल है। तुच्छ को भी महान बना देती हैं।" "तो इसका यही अर्थ हुआ कि आपने पट्टमहादेवीजी को ठीक से समझा नहीं। वे गुणों की प्रशंसक हैं। जो श्रेष्ठ नहीं उसे बढ़ा-चढ़ाकर कहने वाली नहीं। सुनते हैं कि हम जब युद्ध-यात्रा पर निकले, तब आपने उसी समय गणित करके परिणाम बता दिया था। उसी तरह अन्य जन्मकुण्डलियों का भी विश्लेषण किया है। इसलिए आपकी जानकारी, आपके ज्ञान का स्तर क्या हैं, इस सम्बन्ध में उनकी उचित ही धारणा है।" "मैंने भी इस विषय में असावधानी की थी, इस बात को ओर भी उन्होंने मेरा ध्यान आकर्षित किया है, उस असावधानी से मुझे परिचित कराया है।" "कोई भी मनुष्य परिपूर्ण नहीं। कुछ-न-कुछ कमी रहती ही है। जल्दी में कुछ-न-कुछ असावधानी का काम कर बैठता है। इसलिए आप ही प्रतिष्ठा के लिए एक अच्छा मुहूर्त निकालकर बता दें।" "यथामति विचार कर सूचित करूँगा। पर राजमहल के ज्योतिषी असन्तुष्ट न हों और यह न कहें कि यह संगतराश ज्योतिष में भी हस्तक्षेप करने लगा।" "यह बात आपसे सम्बन्धित नहीं। आपको बताया गया कि हमारी क्या इच्छा है। आगे की बात से आपको क्या लेना-देना?" __ "जैसी इच्छा!" "यह मन्दिर अनेक महान विशिष्टताओं का पुंज है। वास्तु-रचना, सौन्दर्य, विशालता, मत-सहिष्णुता आदि का संकेत बनकर एक नवीन उदाहरण बनकर स्थायी रूप धारण करेगा। पट्टमहादेवीजी के अणु-अणु ने जैन तत्त्वानुष्ठान से स्पन्दित होने पर भी इस भव्य कृति के निर्माण के लिए श्री वैष्णवत्व का ही रूप दिया है। कन्नड जनता के इतिहास में यह एक भव्य साधना है। आचन्द्रार्क उनका नाम स्थायी रहना चाहिए 1 इसलिए प्रतिष्ठा का मुहूर्त बहुत श्रेष्ठ होना चाहिए।" "इसे पोय्सल शिल्प के नाम से ही ख्यात होना चाहिए।" "सबके साथ राजवंश का नाम जोड़ने की एक धुन चल पड़ी है। वास्तव पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 401
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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