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________________ यहाँ रह जाऊँ तो समाती में उन्हा, आओ में सोने को होंगे." "यह क्या पिताजी, आप बच्चों की तरह बात कर रहे हैं ? मेरे बारे में सोचने विधारने के लिए मुझसे प्रेम करनेवाले महाराज हैं। मेरी देख-रेख करने के लिए बड़ी रानियाँ हैं. पट्टमहादेवीजी हैं। इसके अलावा स्वयं रानी होने के नाते मेरे लिए स्वयंसिद्ध अधिकार एवं सुविधाएँ भी हैं।" "ऐसा नहीं बेटी! तुम्हें दुनिया का अनुभव कम है। पट्टमहादेवी रह सकती है। वे जैन हैं। शेष दोनों रानियाँ जन्मत: शैव हैं। रानियों में इस तरह धार्मिक मत भेद हो गया तब श्रीवैष्णव होकर तुम अकेली रह जाओगी। धर्मसम्बन्धी कोई पेचीदगी उठ खड़ी हुई तो उसका निवारण कौन करेगा? इसलिए जहाँ तुम रहोगी, वहाँ मुझे रहना होगा। इससे तुम्हें कोई कष्ट होगा?" ___ "आपके मन में जो विचार है, यह स्पष्ट रूप से कह दीजिए। मैं उस सम्बन्ध में महाराज से बातचीत कर लूंगी।" "अभी वेलापुरी में एक बहुत बड़ा मन्दिर बन रहा है। वह अब पूरा होने को है। वहाँ प्रतिष्ठित होनेवाले केशव भगवान को विजयनारायण के नाम से अभिहित करने का आदेश आचार्यजी ने दिया है महाराज को। यहाँ उस मन्दिर के धर्मदर्शी का काम मुझे मिल जाय तो धर्म कार्य और स्वकार्य सध जाएंगे। इतना काम करा दो तो बड़ा उपकार होगा।" "यह क्या पिताजी! मैं और आपका उपकार...? इसके लिए आप मेरे सामने गिड़गिड़ाएँ?" "हाँ बेटी, अब तो तुम एक राज्य की रानी हो और मैं ठहरा एक साधारण प्रजाजन, इसलिए गिड़गिड़ाना ही पड़ता है।" "यह कौन-सा बड़ा काम है, पिसाजी! मैं महाराज से कहकर करवा दूंगी।" "इतना हो जाय। तब देखना ऐसा कर दूंगा कि वेलापुरी के लोग रानी लक्ष्मीदेवी की प्रशंसा करते रहेंगे।" "ओह! यह सब आशा मैं नहीं रखती। मुझे एक दुर्लभ गौरव मिला है। इतने से मुझे तृप्ति न मिले तो अन्य किसी वस्तु से तृप्ति नहीं मिल सकती। इसलिए तरहतरह की अण्ट-सण्ट बातों के बारे में आप कुछ मत सोचें।" __ "अच्छा, जाने दो; जब तुमको ही नहीं चाहिए तो मुझे इन बातों से क्या? मुझे वहाँ विजयनारायण भगवान की सेवा करने के लिए अवकाश मिल आय, यही पर्याप्त है। उन भगवान की सेवा से ही मैं कृतार्थ हो जाऊँगा।" "वही हो, पिताजी।" "यह प्रस्ताव महाराज के सामने कैसे प्रस्तुत करोगी?" "कैसे, क्या कहूँगी-आपकी ऐसी इच्छा है, उसे पूरा करें।" पट्टपहादेवी शान्तला : भाग तीन ;: 387
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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