SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 35
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ''मैं पिला दूँ?" एचलरी मंगलदेखी नै छ। "पिलाओ बेटी," एचलदेवी ने धीरे से कहा। पालदेवी के अंग अंग में सन्तोष फैल गया। धीरे-धीरे थोड़ी-थोड़ी पिलाने लगी। एचलदेवी ने पहली बार से कुछ ज्यादा हो कांजी पी। फिर थोड़ा-सा पानी माँगा। पग्रलदेवी ने सुखोष्ण पानी पिलाया। एथलदेवी के भाल पर और नाक पर पसीने की बूंदें लग रही थीं। पण्डितजी ने देखा और एक दूसरी दवा दी। उसे चाटते हुए एनलदेवी ने कहा. "नींद की दवा तो नहीं दी है न? बहुत दिनों के बाद बड़ी बहू आयी है; उससे बहुत बातें करनी हैं।" "आपको अभी बहुत आराम चाहिए। पसीना निकल रहा है। बहुत थका देगा। नींद में थकावट का अनुभव नहीं होगा!" पण्डितजी ने कहा। "आनन्द के समय में थकावट क्यों होगी, पण्डितजी? आप बीमारी की चिकित्सा जानते हैं। मन को क्या चाहिए सो कैसे मालूम होगा?" ''मैंने अपने बुजुर्गों से केवल शरीर निदान विद्या ही सीखी। रोग रोगो की मनोवृति के अनुसार बदल भी सकता है -बुजुर्गों ने बताया है। उस हद तक मन की गतिविधियों के भी बारे में समझने का प्रयत्न करता हूँ। वशीकरण विधा भी हमारे निदान का एक अंग है। कुछेक उसी को प्रधान वृत्ति बना लेते हैं और दूसरों के मानसिक व्यापारों को जान ही नहीं लेते बल्कि साधना के बल पर अपनी इच्छा के अनुसार उन्हें नचाने की शक्ति भी प्राप्त कर लेते हैं। हमारे बुजुर्गों ने इस विद्या के उपयोग का बहिष्कार ही कर दिया, इसलिए मैंने केवल शारीरिक निदान को ही वृत्ति बनाकर उसका अवलम्बन किया है।" __ "बहुत अच्छा किया। वशीकरण विद्या ने कई परिवारों को उजाड़ दिया है।"-पद्मलदेवी ने तपाक से कहा और अपनी सास जी की ओर देखने लगी कि इसकी प्रतिक्रिया उनकी ओर से क्या होती है। उन्हें नींद आ गयी थी और करवट भी बदल ली थीं। "ओह ! नींद आ गयी है।'' पद्मलदेवी का उद्गार था। "लगता है महामातृश्री आपसे बहुत-सी बातें करना चाहती हैं। फिर भी अधिक बोलने का मौका न देना ही उत्तम है। उनकी शारीरिक शक्ति बढ़ जाय इसलिए मैंने विश्राम अधिक मिलने का प्रयोग किया है। उन्हें अधिक काल तक बचा सकूँगा, यह साहस तो मुझमें नहीं है, परन्तु वे जो कुछ कहना चाहती हैं, उसे कहकर अपने मन की अभिलाषा पूरी कर लें- उनमें इतनी शक्ति ला देने से मेरी आकांक्षा सफल हो गयी । यहाँ तक मैं कृतकृत्य अपने को मानता हूं। पूछताछ करनेवाले सभी जनों से मेरा आग्रह है कि उन्हें ज्यादा कष्ट देकर थकावें नहीं।" पदमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 37
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy