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________________ पण्डितजी चले गये। इसके बाद कुशलप्रश्न हुए। भाई के साथ दोनों के राजधानी में पहुँचने के बाद पद्मलदेवी कितनी कमजोर हो गई हैं- इसे चामलदेवी और बोष्पदेवी ने अनुभव किया। फिर भी उन्होंने इस बारे में कुछ कहा नहीं। वास्तव में इस सन्दर्भ में कुछ बात करना ठीक भी नहीं लगता था। अगर कुछ पूछ लें कि "क्यों कमजोर हुई हो" तो उत्तर में कुछ अण्ट-सण्ट कह दे - इस बात का डर रहा। यहाँ आने के बाद उन दोनों का स्वास्थ्य कुछ सुधर गया था - यह पद्यलदेवी को भी लगा। मगर वह चुप रह न सकी, बोली, "लगता है, यहाँ की आबोहवा तुम लोगों को अच्छी लगी है।" "पैदा हुए, बढ़े भी यहीं न ? अच्छी लगेगी क्यों नहीं ?" चामलदेवी ने संक्षेप में उत्तर दिया। महामातृश्री को देखरेख के काम पर चामलदेवी और शान्तलदेवी रहीं। शेष सभी जन अपने-अपने काम पर चले गये। बोप्पदेवी ने पद्मलदेवी का साथ दिया। दोपहर पण्डितजी ठीक समय पर उपस्थित हो गये। परन्तु अभी तक एचल देवी जगी नहीं थीं। बिना करवट बदले एक प्रहर से भी ज्यादा सोती रहीं, बाद में जागीं। पण्डितजी सामने बैठे ही थे। उनके आने पर चामलदेखी और शान्तलदेवी बाहर आ गयी थीं। 46 'अच्छी नींद लगी ।" एचलदेवी ने कहा आवाज धीमी थी। "गले को कष्ट मत दीजिए। दवा ने काम किया है। अब थोड़ी-सी काँजी पी लीजिए। थोड़ी देर बाद दूसरी दवा दूँगा। अबकी नींद की दवा नहीं मिलाऊँगा । तब वचन देना होगा कि बातचीत नहीं करेंगी।" 41 I 'जाने वाला जीव है, जो कहना है उसे कह देना चाहिए पण्डितजी क्यों कहते हैं कि बातचीत न करें 11 LL 'जब बिना थके बोल सकने की शक्ति आ रही है तब बोलकर क्यों थकना चाहिए, इसलिए विनती की।" पण्डितजी ने आग्रह किया। 61 'क्या आपका यह विश्वास है कि मैं फिर जी जाऊँगी ?" ++ 'यह कहने वाला मैं कौन हूँ? वह सब ईश्वरेच्छा है। आखिरी समय तक हमें हृदयपूर्वक प्रयत्न करना चाहिए। सन्निधान का सहयोग मिले तो मैं कृतकृत्य होऊँगा।" 41 'अरे पागल ! मैं क्या छोटी बच्ची हूँ ? मुझमें अब कौन-सी आशा-आकांक्षा रह गयी है जो मुझे जीवित रहना है ? खण्डित परिवार को अखण्ड बना देख लिया, आत्मा तृप्त हो गयी। इस परिवार को कभी-न-कभी मरना तो हैं ही। जितनी जल्दी हो मैं प्रभु से जा मिलूँगी।' " इतने में कांजी आ गयी। पद्मलदेवी साथ आयी थीं। 36: पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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