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________________ "तो आज हो यात्रा पर रवाना होने के लिए सहमत हैं, यही मान लूँ?" "ठीक है।" यात्रा व्यवस्थित ढंग से हुई। जल्दी ही, अर्थात् तीन ही दिनों में वे यादवपुरी जा पहुँचे । नवमी के दिन निकलना या पहुँचना निषिद्ध होने के कारण मायण ने रास्ते में फिक्केरी में मुकाम किया था। रास्ते में मायण से बहुत-सी ऐसी बातों की जानकारी प्राप्त की जिन्हें वह जानती नहीं थी। पोयसल राज्य में प्रजाहित के कार्य किस तरह क्रमबद्ध रीति से विस्तृत होते जा रहे हैं, इस कार्य में राज-परिवार एवं उन्नत राजवंश के लोग और अधिकारी वर्ग क्या सब कर सकते हैं इन बातों का स्वरूप परिचय भी उसे मिल गया। खुद दूर रही--इस वजह से यहाँ के कार्य-कलापों के बारे में अपनी खुद की जानकारी वास्तविकता से कितनी भिन्न थी, यह भी उसे अछी तरह मालूम हो गया। वास्तव में भायण ने उसके सामने एक भव्य चित्र उपस्थित किया था। अनुभूतियों के विश्लेषण द्वारा प्रस्तुत व्यक्ति-चित्रों ने भी पद्मलदेवो के मन पर खूब प्रभाव डाला था। यात्रा के ये तीन दिन पालदेवी के मस्तिष्क को निर्मल करने के लिए उत्तम निदान साबित हुए। मायण की इस चिकित्सा के फलस्वरूप उसका दृष्टिकोण ही बदल गया, कहा जा सकता है। उसे तो सारी बातें मालूम थीं। पद्मलदेवी की रीति-नीति से अपरिचित तो था नहीं। उसे भय था कि उसके आने से राजमहल में फिर से किसी तरह का असन्तोष ने फैल जाए। अपने जीवन को पुनरुज्जीवित कर एक नयी तादात्म्यभावना उत्पन्न करके सुखमय बनानेवाली महानुभाव पट्टमहादेवी को किसी तरह का दुःख नहीं होना चाहिए, यह उसकी प्रबल आकांक्षा थी। स्त्री-स्वभाव को अच्छी तरह समझनेवाली चट्टला ने मायण को काफी सिखा-पढ़ाकर भेजा था। वह भी अच्छी तरह से अपना काम अदा कर कृतार्थ हुआ। शान्तलदेवी को प्रेरणा इस सबके पीछे रही। क्या सब हो सकता है इसकी कल्पना होने पर भी उन्होंने व्यक्त नहीं किया, परन्तु अपने लक्ष्य की साधना के लिए मौका मिलने पर उसे उपयोग करने से चूकती न थीं। चाहे कारण कुछ भी हो, पद्मलदेवी का इस तरह अकेली दूर रहना व्यक्तिगत दृष्टि से ठीक होने पर भी राजघराने की प्रतिष्ठा के ख्याल से, राष्ट्रहित की दृष्टि से शान्तलदेवी को ठीक नहीं लग रहा था। उन्होंने कई बार इस सम्बन्ध में अपने पतिदेव से बातचीत भी की थी। वह भी यह नहीं चाहते थे कि ये लोग दूर रहें। किसी भी तरह के कार्य-कलाप का प्रसंग होता तो आमन्त्रण का भी कोई मूल्य नहीं होता। यह बात सब जानते थे। बेटी को मानसिक शान्ति मिले-इस वजह से पिता मरियाने ने भी बेटी के स्वभाव के अनुसार अपने जीवन को दाल लिया था। आजीवन उसी तरह रहे थे। जो कुछ तकलीफ सहनी पड़ती थी बेचारी चामलदेवी और बोप्मदेवी को। पिता के देहावसान के 32 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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