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________________ से आये हैं और किस ओर जा रहे हैं?" चट्टला ने तुरन्त उत्तर दिया, "हम वेंगिनाखु से आये हैं, यात्री हैं। भद्राचल, गाणगापुर, पण्ढरापुर, सीतिमनि, शृंगेरी, शिवगंगा होते हुए यहाँ आये हैं। यहाँ से शिवसमुद्र, शिवकांची, तिरुवण्णा मलै, चिदम्बरम, पलनी, मदुरै, रामेश्वर जाने की अभिलाषा है। वह सफल होगी या नहीं, ज्ञात नहीं। यहाँ तक आने में बहुत कष्ट हुआ। तलकाडु के पंचलिंग महादेवों को न देखें तो हम शिवभक्तों के लिए मुक्ति कहाँ? इसलिए किसी भी तरह से हो, हम यहाँ आना ही चाहते थे। परन्तु मार्ग में किसी सेना का एक पड़ाव पड़ा था। उसे पार कर यहाँ तक पहुंचते-पहुंचते हम बहुत थक गये। ओहो! कितनी बड़ी सेना! उस पड़ाव को पार कर हम चल ही नहीं सके, पैर इतने दुखने लगे कि आगे बढ़ना कठिन हो गया। वे हाथी, घोड़े-उनका हिसाब लगाना असम्भव है। यहाँ कहीं युद्ध होने वाला है क्या? ऐसी बात हो तो कह दें, हम कल ही यहाँ से चल देंगे। वेंगिनाडु से इस ओर आते हुए वहाँ चालुक्यों और काकतीयों के बीच युद्ध चलने लगा था तो इसी कारण से अपनी इस यात्रा को छ: मास के लिए स्थगित करना पड़ा। ये निकम्मे युद्ध करते हो क्यों हैं? इससे किसे क्या लाभ होगा, ईश्वर हो जाने। हमें रास्ते में जो सेना मिली थी वह किसकी थी?" "मैं क्या जानूँ?" पुजारी ने कहा और दामोदर की ओर देखने लगा। "यही उस डींग हाँकनेवाले बिट्टिगा की।" आदियम ने कहा। 'बिट्टिगा कौन है ?" मायण ने पूछा। "अभी हाल में सिर उठानेवाला एक पालेगार है वह। उस शक्तिहीन चालुक्य विक्रम को लात मारकर, अब स्वतन्त्र हो गया है। इतने ही से उसका सिर फिर गया है; उससे जो हो नहीं सकता; वही सब करने चला है।" दामोदर ने कहा। "तो यहाँ जो आये हैं..." चट्टला ने कहा। "अपने रक्त से कावेरी को रंगकर पत्नी का सुहाग पोंछने।" अहंकार से आदियम ने कहा। "तो आप लोगों पर आक्रमण करने आये हैं?" मायण ने कहा। "छोड़ो...अब चलो; कर लिये पंचलिंग महादेव के दर्शन? कुछ नहीं चाहिए। अपना गाँव-देश छोड़, यहाँ आकर क्यों मरें?" घबड़ाती हुई चट्टला ने कहा। यह सुन आदियम जोर से हँसने लगा। "डरनेवालों को और अधिक डराना ही चोलों का काम है ?"गुस्से का प्रदर्शन करती हुई चट्टला ने कहा। "न, न ऐसा नहीं । आप लोगों को डरते देखकर हंसी आ गयी। तुम, अचारों को क्या मालूम है कि युद्ध का क्या अर्थ है। सुनो, तुम लोग वास्तव में एक पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 263
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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