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________________ सुरक्षित स्थान में हो। यहाँ किसी को भी कोई भय नहीं। यह बिट्टिगा एक घुमक्कड़ है। कुछ हाथ दिखाने के विचार से यहाँ आया है। उसकी जन्मपत्री में शायद यही लिखा है कि उसका नाश चोलों से होगा। हमारी शक्ति, सैन्यबल कोई सामान्य नहीं।" हँसी रोककर आदियम ने कहा। "उनकी संख्या कितनी है यह जाने बिना शायद यों ही कह रहे हैं।" मायण बोला। "आप लोगों की राय में वे कितने हो सकते हैं?" आदियम ने जानना चाहा। ''मुड़कुत्तोरे मल्लिकार्जुन टीले पर से देखने पर दृष्टि जिलनी दूर जाती है तम्बू हो तम्बू, सैनिक, हाथी, घोड़े ही दिखाई देते हैं। कोई दस-पन्द्रह सहस्त्र तो होंगे ही।" मायण ने कहा। यहाँ इस समय हमारे दस सहस्त्र सैनिक हैं। चोल चक्रवर्ती दस सहस्त्र और भेज रहे हैं। चार-पाँच दिनों में वह सेना हमारी सेना के साथ सम्मिलित हो जाएगी। इसीलिए हम चुप हैं। वह आ गयी तो बिट्टिगा का काम तमाम समझो।" आदियम ने कहा। "क्या आप चोल चक्रवर्ती के कोई पदाधिकारी हैं ?" मायण ने पूछा। "मैं यहाँ का सर्वाधिकारी हूँ।" आदियम ने छाती तानकर कहा। "तो आप राज-प्रतिनिधि हैं? आप उनके कोई रिश्तेदार हैं?'' मायण ने प्रश्न किया। "अपरिचित पर विश्वास करना कठिन है न?" आदियम ने कहा। "तो आप चोल चक्रवर्ती के क्या लगते हैं?" "समधी हूँ।" "कैसे भला, जान सकता हूँ?" "आवश्यक नहीं।" "अच्छा, आने दीजिए, अनायास हमें राजदर्शन हो गया। शैव मत आदि मत है। उसे समाप्त करने के लिए अन्य मत प्रयत्न कर रहे हैं। हमें तो यह मतान्तर सह्य नहीं। आपके चक्रवर्ती तो हमारी ही भाँति शैवमतावलम्बी हैं। इसलिए हमें उन पर विशेष गौरव है।" चट्टलदेवी ने कहा। "शिवभक्तों पर हमारे प्रभु का भी उसी तरह का गौरव है। उन्हें अन्यमतों से कोई द्वेष नहीं। परन्तु जब अन्य मतीय मतान्तरण करने का प्रयत्न करते हैं तो उन्हें बड़ा क्रोध आता है। निर्दय होकर दण्ड देते हैं।" "हमने भी यह बात सुनी है...कहाँ सुनी है...तुम्हें याद है ?" कहते हुए मायण ने चट्टला की ओर देखा। 264 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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