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________________ "न मुझे कोई नापसन्दगी है न आचार्यजी का सान्निध्य अप्रिय है। परन्तु हमने अम्माजी को वचन दिया था न? अच्छी हो जाने के बाद वेलापुरी जाएँगे। सन्निधान को याद है न?" शान्तलदेवी ने बात को समझाया। "हाँ, याद है, मगर उस तरफ ध्यान नहीं गया। वहीं करेंगे। शायद अम्माजी को यहाँ रहने से उसी कम्बखत बोभारी की याद सताता रहेगी। सिांगमच्या को यहाँ रखकर हम बेलापुरी जा सकेंगे। मंचिदण्डनाथ को आसन्दी भेज देंगे।" "रानियाँ हमारे साथ बेलापुरी में ही रहें।" शान्तलदेवी ने कहा। "न, वे भी आसन्दी जाएँ। हम नागिदेवण्णाजी से विचार-विनिमय कर निर्णय करेंगे।" बिट्टिदेव ने अपना निर्णय ही कह दिया। चर्चा हुई। यात्रा के लिए मुहूर्त निश्चित कराने का निर्णय भी लिया गया। तब नागिदेवण्णा ने कहा, "इस विषय को एक बार आचार्यजी को सुनाकर निर्णय करना शायद अच्छा होगा, ऐसा मुझे लगता है।" "हमारी आवाजाही उन्हें क्यों मालूम पड़े?" बिट्टिदेव ने कहा। "जानना तो वे नहीं चाहेंगे। पर वे महात्मा हैं, हम ही स्वयं कहेंगे यह अच्छा है न? इसमें एक सौजन्य की भी बात होगी।" नागिदेषण्णा ने कहा। "वैसा ही कीजिए।" बिद्रिदेव ने कहा। नागिदेवण्णा ने तुरन्त आचार्यजी को निवेदन कर दिया। उन्होंने कहा, "पहाराज यहीं रहते तो अच्छा था।" "मैं उनका चरणसेवक मात्र हूँ। आज्ञापालन मेरा काम है।" "सो तो ठीक है। हम भी सलाह देने में असमर्थ हैं। उनके यहीं रहने की इच्छा करना हमारा स्वार्थ है। उनके राजकार्य कैसे होंगे—यह हम क्या जानें । फिर भी एक बार दर्शन के लिए अवकाश मिलेगा तो उपकार होगा।" "वही हो।" कहकर नागिदेवण्णा विदा हुए; सन्निधान से निवेदन किया। "ठीक है, हम भी आचार्यजी का आशीर्वाद ले लेंगे" बिट्टिदेव ने कहा। फिर राजमहल ही में भेंट हुई। आचार्यजी ने ही बात छेड़ी, "सचिव से बात मालूम हुई। भगवान् की कृपा से महाराज और पट्टमहादेवीजी से सम्पर्क हुआ। जब तक हम यहाँ रहेंगे तब तक राजदम्पती यहीं रहते तो अच्छा थाबात सुनते ही यही हमें लगा। फिर भी सजकार्य कैसा होता है-इससे हस अपरिचित हैं। महाराज के अमृतहस्त से मन्दिर निर्माण का कार्य जो आरम्भ हुआ उसे चार- छह महीनों में ही समाप्त कर देने का विचार है। आनेवाले माघ महीने में मूर्ति-प्रतिष्ठा करने का विचार है। कम-से-कम तब तक यहाँ रहेंगे तो अच्छा होगा।" 704 :: पमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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