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________________ "ऐसे प्रसंग में सन्निधान की रक्षा कौन करेंगे?" "सन्निधान हैं। इसकी लोगों को जानकारी हो तो रक्षा की जरूरत पड़ती है। जब भीड़ में एक बन जाते हैं, तब इस बात का डर ही नहीं रहता।" "गुरु-शिष्य की जोड़ी अच्छी है।" "इसका मतलब ? कौन गुरु-शिष्य?" "श्री श्री रामानुजाचार्य जी गुरु; समधिगत पंचमहाशब्द शिष्य।" "किसने ऐसा कहा?" "अभी फिलहाल मैं तो। वे चमत्कारी हैं और सन्निधान वेष बदलने में निपुण। इन दोनों की जोड़ी से सामूहिक परिवर्तन ही महती साधना..." "उन्होंने ऐसा कहाँ कहा? हमने भी ऐसा क्या किया है?" "उन्होंने अभी कहा नहीं। सन्निधान ने अभी किया नहीं। परन्तु अभी मैंने जो कहा वह भविष्यवाणी ही है।" "न, न, वे केवल स्वानुष्ठान-निरत हैं, साधक हैं, प्रचारक नहीं।" "मुझे इस बात में विश्वास नहीं। ऐसा हालत में अपना देश छोड़कर दूसरे देश में आने की जरूरत नहीं थी। वे केवल आत्मसाधक ही होते तो चोल राजा उन्हें देश निकाले का दण्ड न देते।" "उन्होंने यह बात नहीं कही न?" "वे क्यों कहेंगे? कोई अपनी गलती को आप नहीं कहता।" "हमें विश्वास नहीं होता कि उन्होंने गलती की है।" "सन्निधान में यह विश्वास उत्पन्न होने के लिए कौन-सी गवाही दी है उन्होंने?" "राजकुमारी की बीमारी के निवारण से भी ज्यादा साक्ष्य और क्या हो सकता है ? अनेक वैद्य जो काम नहीं कर पाये, उसे उन्होंने करके दिखा दिया।" "अपने देश के ही राजा को ऐसी करामात दिखाकर उसे भी तो अपना अनुयायो बना ले सकते थे न?" "हाँ, शायद ऐसा भी कर सकते थे।" "ऐसा न कर देश-भ्रष्ट होकर यहाँ आये क्यों?" “शान्ति-प्राप्ति की इच्छा से एक देश को छोड़ दूसरे देश जाया करते हैं। ऐसे न आये होते तो बलिपुर में बाप्पुरे नागियक्का के महान् कार्य के लिए जगह कहाँ थी? बेलगोल में बाहुबली स्वामी को स्थापना के लिए मौका कहाँ मिलता? बुद्ध, महावीर स्वामी तो कर्णाटक में जन्मे नहीं थे न? तुम्हारा घराना महावीर के जन्मस्थान से आकर यहाँ बसा कि नहीं? हमारे पूर्वज पुराने जमाने के यदुवंशी कहलाते हैं; हमारी जानकारी में तो हमारा स्थान कर्णाटक का सह्याचल प्रदेश ही पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 179
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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