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"सब अच्छे हैं, अम्माजी। हम सबको महामातृश्री ही को चिन्ता है।"
"अब तो हम सब आ गये न? सोमनाथ पण्डित अच्छी दवा भी दे चुके हैं। मैं आपकी प्रतीक्षा कर रही थी मानि; दो सा देश है। पिा गाऊँगी।" कहकर शान्तलदेवी चली गयी। रेविमग्या भी पीछे-पीछे चला गया।
हेगड़ती माचिकब्बे पलंग के पास आयीं और एक आसन पर बैठ गर्यो। स्वास्थ्य के बारे में पूछताछ की। अपनी अनुपस्थिति के उस थोड़े-से समय में ही भारी परिवर्तन उनमें दीख पड़ा।
__ "अम्माजी के आने से मुझमें एक नया जीवन ही आ गया है। उसका संग ही संजीवनी है। दिमाग की बीमारी के लिए उसकी बातें बहुत अच्छी दवा है। सब बच्चे सो गये?"
"हाँ, इन सबके आने की बात मालूम होती तो शायद जगे रहते। हमेशा की तरह भोजन करते ही छोटे शयनागार में चले गये। बड़े दोनों थोड़ी देर पढ़ते रहे, मेरे इस ओर निकलते-निकलते सो गये। वास्तव में राजमहल के द्वार तक पहुँचने तक मुझे मालूम ही नहीं था कि सन्निधान आये हैं।" ____ "हेगड़ेजी को भी मालूम नहीं?"
"वे आज दोपहर से किसी काम से दोरसमुद्र गये हुए हैं, अभी लौटे नहीं। लौटने पर मालूम हो ही जाएगा। इस तरफ आएंगे ही। सन्निधान का स्वास्थ्य पूर्णरूप से सुधर गया होगा?"
"यह विश्वास दिलाने के लिए आपके सन्निधान ने मेरे सामने प्रयत्न किया। अभी स्वास्थ्य सुधरने में बहुत कुछ बाकी है। बिगड़े हुए स्वास्थ्य में लगातार यात्रा करने के कारण बहुत थक भी गये हैं। घबड़ाने की जरूरत नहीं। अम्माजी के पूजाफल से सब ठीक हो जाएगा।"
"सन्निधान के स्वास्थ्य के साथ महामातृश्री का भी स्वास्थ्य जल्दी सुधर जाय..."
"सुधर जाय नहीं हेग्गड़तीजी, सुधर गया है। सुनती नहीं काँसे की-सी आबाज! मेरे मुंह से कान लगाकर बात सुननी पड़ती थी। आज रात आप और राजलदेवी दोनों को आराम है। उन्हें खबर दे दीजिए कि आज यहाँ आने की जरूरत नहीं। आज बहुत दिनों के बाद ये अपूर्व बहमें मिल रही हैं। साथ रहकर सत्त बितावें।"
"जो आज्ञा।" कहकर माचिकब्बे बाहर जाकर खबर देकर आ गयीं।
उस दिन वास्तव में एचलदेवी आराम की नींद सोयीं। माचिकब्बे भी आराम से सोयीं।
दूसरे दिन से महाराज बिट्टिदेव का और इधर महामातृश्री का भी स्वास्थ्य
पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 19