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सुधरने लगा। सोमनाथ पण्डित को दवा की उत्तमता का साक्ष्य एचलदेवी के स्वास्थ्य ने दिया था।
सभी कार्यक्रम यथावत् चलने लगे। पखवारे में एक बार पुनीसपय्या की तरफ से युद्ध की खबर मिल जाया करती थी। नीलगिरि के सोडवों और चेर लोगों को जीत कर वहाँ पोयसलों के प्रभुत्व को स्थापित कर वे यहाँ से लौट गये थे। मंचि दण्डनाथ की अश्वसेना से इस विजय में बहुत मदद मिली थी।
पुनीसमय्या की इस जीत का समाचार मिलने के थोड़े ही दिनों बाद उदयादित्य की पत्नी ने पुत्ररत्न को जन्म दिया। महामातृश्री एचलदेवी उस नवजात का आलिंगन कर बहुत सन्तुष्ट और खुश हुई। उदयादित्य आकृति में अपने पिता से मिलता-जुलता था। उसका बेटा भी अपने पिता से मिलता-जुलता था। एचलदेवी की षष्टि-पूर्ति का भी वही पम्प पा सन्मने सोच विचार कर शिशु का उसके दादा के ही नाम से नामकरण करने का निश्चय किया। उदयादित्य के बेटे का एरेयंग नाम रखकर जातकर्म और नामकरण संस्कार सम्पन्न किये गये।
पष्टिपूर्ति शान्ति-समारोह के आयोजन की बात पर सबने जोर दिया, किन्तु एचलदेवी ने यह कहकर कि प्रभु के अभाव में उन्हें कोई उत्सव नहीं चाहिए, मना कर दिया। "विजयोत्सव और नामकरण के उत्सव को धूमधाम से मनाइए, यही मेरे लिए शान्ति का उत्सव है, सन्तोष देनेवाला उत्सव है।" एचलदेवी ने साफ और सरल शब्दों में कह दिया।
लाचार होकर उतना ही करके सबको तृप्त हो जाना पड़ा।
मौका पाकर शान्तलदेवी ने अपनी पहले की इच्छा प्रकट की-"अब यहाँ सब ठीक है। महामातृश्री का भी स्वास्थ्य सुधरा है। सन्निधान के भाई यहाँ महामातृश्री के साथ रहते हैं। हम बच्चों के साथ यादवपुरी जाकर कुछ समय तक वहाँ रहें। इसे कार्यान्वित करने के लिए आज्ञा प्रदान करने की कृपा करें।"
''वैसा ही हो, परन्तु इन राजकुमारियों के लिए क्या करेंगी? यहीं छोड़ देंगी?"
"सन्निधान यदि उन्हें यादवपुरी ले जाना चाहें तो वैसा किया जा सकता है।" "हम उन्हें ले जाएँ? इसमें हमारा अपना क्या है?" "सो मुझे कैसे मालूम हो? ऐसा कुछ हो तो सन्निधान ही बतावें।"
"हमने तो देवीजी से कोई बात छिपा नहीं रखी। युद्धभूमि से लौटने के बाद मचि दण्डनाथ ने कहा था कि इन राजकुमारियों का विवाह कराकर मुक्त होना है।"
"सहज ही तो है। विवाह योग्य तो हो हो गयी हैं। अपनी हस्ती-हैसियत खो बैठी थीं। सन्निधान के आश्रय देने और एक हिस्से का अधिकार देने के बाद उनमें आत्मविश्वास बढ़ा है।"
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20 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन