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3. पट्टा होती की समाधीला का परिचय था। दास-दासियों पर पट्टमहादेवी बहुत प्रेम रखती हैं-यह बात भी वह जानती थी। फिर भी, स्वयं न पूछने पर भी, जिस विश्रान्ति की उसे आवश्यकता थी वह स्वयं पट्टमहादेवी ने अपनी प्रेरणा से हो बड़ी उदारता से दे दी। इससे उसे खुश होना चाहिए था। इसके बदले यह अत्यन्त दु:खी हो गयी। वास्तव में वह राजकुमारी को इस हालत में छोड़ जाना नहीं चाहती थी। जबसे राजकुमारी का जन्म हुआ तब से अब तक के सात-आठ वर्षों की अवधि में सदा राजकुमारी की देखरेख की सारी जिम्मेदारी उसी ने अपने ऊपर ली थी। एक तरह से राजकुमारी के प्रति उसके मन में एक मातृत्व का भाव पूर्णरूप से व्याप गया था। ऐसी हालत में राजकुमारी को इस अस्वस्थता के समय छोड़ जाना, उससे अलग रहना, कैसे हो सकता था? यह उससे कतई सम्भव नहीं था। अपने आप सोचने लगी कि पट्टमहादेवी ने ऐसा क्यों किया? उनकी आज्ञा का पालन मेरे लिए दण्ड भोगने के बराबर है। कुछ देर सोचती रही। आखिर उसने धीरे से कहा, "मेरी एक बिनती है।" ___ "क्या?"
"राजकुमारी जी पूर्णरूप से स्वस्थ हो जाएँ, तब इस आज्ञा का पालन कर सकूँ-इसका अनुग्रह करें।"
"क्यों, तुम न होगी तो राजकुमारी अधीर हो उठेगी! इसका डर है?"
"न, न, मेरा मन ही उनसे दूर रहना नहीं चाहता। सन्निधान इतना अनुग्रह करें।"
"तम्हारी इच्छा। मगर, गर्भवती तुमको राजमहल की नौकरी करने के कारण तकलीफ हुई-यह शिकायत न हो। राजमहलवाले कठोर हैं, उन्हें दया-करुणा कुछ नहीं, लोगों के कष्ट-सुख की परवाह नहीं, यों कहते फिरनेवाले भी हैं, ऐसा सुनने में आया है। कम-से-कम मेरे समय में ऐसी शिकायतें सुनने को न मिलें।"
___ "महाराज के विषय में और पट्टमहादेवी के बारे में हर कहीं प्रशंसा ही प्रशंसा सुनने में आती है। आप इस सम्पूर्ण राज्य के माता-पिता समान हैं। देवांश सम्भूत सन्निधान पर इस तरह की बातें आ ही नहीं सकतीं । जीभ जल जाए ऐसी बातें निकालनेवाली को। राजघराने के प्रति प्रजा में जो गौरब और आदर है, उसके साक्षी हैं देशभर में हो रहे कार्य। राजकुमारी के स्वास्थ्य की कामना करते हुए हर रोज लोग अपने-अपने मताचार और कुल-सम्प्रदाय के अनुसार स्वयं प्रेरित होकर पूजा-पाठ करते मनौतियाँ पना रहे हैं। हमारे घरवाले भी परसों बाहुबली भगवान् से प्रार्थना करने बेलुगोल गये हैं। आप लोगों की सेवा करने का हमें जो सौभाग्य मिला, वह जन्म-जन्मान्तरों के संचित पुण्य का प्रभाव है। राजवंश के लिए हम अपने वंश का बलिदान भी देने को तैयार हैं। हम यह अच्छी तरह
120 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन