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________________ जानते हैं कि इससे बढ़कर श्रेय का काम दूसरा नहीं। इस समय सन्निधान ने मुझ पर जो अनुग्रह किया उससे में पुनीत हो गयी, धन्य हो गयी।" एक ही साँस में यह सब कह गयी और फिर शान्तलदेवी के चरणों में झुक गयी। LL 'अर्हन्! पता ही नहीं चलता कि तुम किस-किस रूप में कब कैसी मदद करते और दिलासा देते, डूबते को किस रास्ते से आकर उबार देते हो। इस सबका स्मरण करने पर यह स्वयं सिद्ध हो जाता है कि तुम सर्वव्यापक हो । इतने लोगों के प्रेम और आदर के पात्र हम और हमारी सन्तान श्रेयवान होकर जीएँगे इसमें मुझे कोई शंका नहीं ।" यों मन-ही-मन आँखें मूंदकर प्रार्थना की और हाथ जोड़कर ईश्वर को प्रणाम किया शान्तलदेवी ने । फिर आँखें खोलीं और कहा, "पोचिकव्वे! तुम अपने पति के लौटने तक घर मत जाओ, यहीं राजमहल में रह जाओ। तुम्हारे घर समाचार भेजने की व्यवस्था कर दी जाएगी। उस जक्की की क्या हालत है जरा देखकर तो आओ । यदि वह सोयी है तो तुम इस बीच भोजन कर आना, भूखी नहीं रहना।" पोचिकच्चे चली गयी। शान्तलदेवी अभी पलंग पर राजकुमारी के पास पहुँची ही नहीं थीं कि राजमहल के वैद्य के जल्दी सन्दर्शन करने आने की खबर मिली। उन्हें बुला लाने की आज्ञा देकर स्वयं जाकर पलंग पर बैठ गयीं और पूछा, "चन्नच्चे! राजकुमारी बीच में जगी थीं ?" "नहीं, " उसने कहा । परदा हटा, सोमनाथ पण्डित अन्दर आये। पण्डितजी के आते ही शान्तलदेवी ने पूछा, "पण्डितजी, आपके बच्चे का स्वास्थ्य कैसा है ?" EL 'अब स्वस्थ है, ऐसा जैसे कुछ भी नहीं हुआ हो। इस विचित्र को ही निवेदन करने जल्दी-जल्दी चला आया। आराम करते समय सन्निधान को कष्ट नहीं देना चाहिए यह बात जानते हुए भी मैं चला आया। क्षमा करें।" वैद्य ने कहा । " राजकुमारी के स्वस्थ होने तक हमें विश्राम कहाँ, पण्डितजी ? खड़े क्यों हैं, बैठिए।" थे।" पण्डितजी बैठ गये । "क्या विचित्र है ?" "तमिलनाडु से एक आचार्य पधारे हैं। " 24 'यह बात हमें भी मालूम है। मन्त्री नागिदेवण्णाजी उनके शिष्य को बुला लाये La 'जब मैं घर पहुँचा, तो देखा कि आचार्यजी मेरे ही घर पर मुक्काम कर पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन 21
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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