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________________ हो । शान्तलादेवी ने उस सूत के गोले को हाथ में लेकर पोचिकव्वे की ओर देखते हुए पूछा, "टोपी बना रही है क्या ?" पोचिकब्वे ने सिर हिलाकर "हाँ" सूचित किया। तब तक उसमें डर समा गया था। इसलिए सिर झुका लिया 1 ।। 'टोपी किसके लिए ?" पोचिको बहुत साहस से सिर उठाकर कुछ कहना भी चाहती। परन्तु उसकी बात वहीं अटक गयी। सूत ने को आगे बढ़ाती हुई "टोपी किसके लिए ?" फिर शान्तलदेवी ने पूछा 1 "बच्चे के लिए।" बहुत यत्न करके वह बोल सकी। और, सूत के गोले को दोनों हाथ पसार कर ले लिया। २० 'किसके बच्चे के लिए ?" दूसरा सवाल तुरन्त कान में पड़ा । " अपने ही।" उसने कुछ सन्तोष से कहा । " 'लड़का है या लड़की ?" बेचारी पोचिकव्वे क्या उत्तर दे सकती थी ? शान्तलदेवी कुछ क्षण तक सोचती रहीं। फिर पूछा, "ठीक है, ठीक, समझ गयी अब तुम्हारे कितने महीने हैं ?" ו चार।" LL 'अभी तो पाँच महीने पड़े हैं, टोपी के लिए क्या जल्दी थी ?" इस सवाल का भी बेचारी क्या उत्तर दे सकती थी ? यों ही पट्टमहादेवी की ओर देखती रही। उसने सोचा कि पट्टमहादेवी ने अपराधिनी मान लिया हो; जब राजकुमारी बीमार है, तब दासी होकर कर्त्तव्य की ओर ध्यान न देकर अपना काम करने लगी तो यह अपराध ही हुआ। वह सोचने लगी कि क्या करे। भयग्रस्त तो पहले से थी अब दुःख भी उमड़ आया। उसने पट्टमहादेवी के पैरों पर गिरकर क्षमा याचना की बोली, "गलती हुई, क्षमा करें।" उसके आँसू पैरों पर बूंद-बूंद कर गिर रहे थे । " पोचिकत्वे, उठो । क्या हो गया, इतनी घबराती क्यों हो? तुमने तो कोई गलती नहीं की। प्रथम बार माँ बननेवाली स्त्री की क्या-क्या भावनाएँ हुआ करती हैं, वे कौन-कौन से रूप धारण करती हैं - यह सब मैं जानती हूँ। मैं भी तो माँ हूँ न?" - पोचिकवे उठ खड़ी हुई। घबराहट कुछ कम हुई। " जाओ तुम अपने को अधिक थकाओ मत। आगे से तुम्हारा काम सुग्गला करेगी।" शान्तलदेवी ने कहा । पोचिक वहाँ से हटी नहीं चुपचाप राजकुमारी की ओर देख रही थी । पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन 119
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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