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________________ घबराकर राज - दम्पती उसकी ओर झुके। उनका मन कुछ देर के लिए इस चिन्ता से कुछ दूर सरक गया था परन्तु इस चिल्लाहट ने उन्हें फिर आतंकित कर दिया। " सन्निधान ने विशेष पुरस्कार की घोषणा कर वैद्यों को बुलवाने का जो प्रयत्न किया, उसके अनुसार कोई वैध नहीं आये ?" "नहीं देवी, कोई नहीं आया।" तभी " माँ...माँ...हाय हाय हाय! गला घोंट रहे हैं... माँ... डर लगता है...माँ...माँ... " बड़बड़ाती हुई राजकुमारी एकदम उठ बैठी । थरथर काँपती हुई बच्ची को अपनी छाती से लगाकर शान्तलदेवी ने कहा, "हम यहीं बैठे हैं, तुम्हारे पास ही हम यहीं हैं तो डर किस बात का ?" फिर भी उसका कम्पन थमा नहीं। राजकुमारी ने आँखें खोलकर भयमिश्रित दृष्टि से शयनकक्ष में चारों ओर देखा। जब कोई दिखा नहीं तो कुछ साहस बटोरकर बोली, "तो...तो... वे चले गये न ? बच गयी । बच गयी।" "कौन है, बेटी ? यहाँ कोई नहीं आया। मैं और सन्निधान दोनों बहुत देर से यहीं बैठे हैं।" "यहाँ तीन लोग आये थे। क्या मैं झूठ बोलती हूँ ?" "कौन हैं वे ?" "मुझे मालूम नहीं। मैंने उन्हें कभी देखा हो, तब न ?" " वे देखने में कैसे थे, बेटी ?" " एकदम काले। हाथी जैसे मोटे।" "यहाँ कैसे आये ?" "मालूम नहीं। उनमें बड़ी आकृति उस दरवाजे के पास खड़ी हो मेरी ओर उँगली दिखाकर चली गयी। बाद... बाद को... वे दो... जो आयी थीं, मेरे पास आयीं । उनके हाथ मेरे गले पर पड़नेवाले ही थे कि मैं 'माँ-माँ' कहकर तुम्हें पुकार उठी। चारों ओर अँधेरा छा गया। फिर... फिर... पता नहीं क्या हुआ।" कहकर उसने शयनकक्ष में एक बार फिर चारों तरफ देखा । थोड़ी देर बाद हड़बड़ाकर बोली, "माँ... प्यास... प्यास... कुछ चाहिए ।" शान्तलदेवी ने राजकुमारी को गोद में लिटा लिया। बिट्टिदेव उठे, दरवाजे तक जाकर परदा हटाया। दासियाँ सीधे खड़ी हो गयीं। राजा ने हाथ के इशारे से बुलाकर कहा, "राजकुमारी को प्यास लगी हैं ! वैद्य के कहे अनुसार तैयार किया हुआ पेय जल्दी ले आवें।" फिर लौट आये। उन दासियों में से एक भागी गयी। राजकुमारी जीभ निकालकर गला फाड़कर छटपटाने लगी। पट्टमहादेवी शातला भाग तीन : 113
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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