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________________ "भगवान् अनेक नहीं। वह एक है। वह हमारे विश्वास के अनुसार हमारा इष्टार्थ पूर्ण करता भी है और नहीं भी करता है। इस विश्वास में स्थिरता को यदि हम खो दें तो हमें मिलेगा ही क्या? आप ही विचार कर देखें । 'जो भगवान् राजकुमारी को जिलावेंगे उस भगवान् के भक्त बन जाएँगे'-यह कहते समय अब तक जिस पर विश्वास रहा, वह बदल गया, यही न हुआ? उस हद तक यह अस्थिर ही बना रहा न?" "देवी, सत्य कहा जाए तो यह बात मेरी चिन्तन-शक्ति के बाहर की है। परन्तु जहाँ हमारी कल्पना के सफल होने का साक्ष्य मिलेगा, वहीं हमारा विश्वास जमता है। यों विश्वास करना लोकधर्म है-ऐसा हम मानते हैं। इससे अधिक हम कुछ कह नहीं सकते।" "जाने दीजिए। अब इस पर चर्चा क्यों ? हमारे विश्वास का और हमारी भावना की प्रतिक्रिया का लगा अब एक ही विषय पर केन्द्रित है, और वह राजकुमारी के हित चाहने में स्थिर है।" "परन्तु तुमने उस मुस्कुराहट का कारण नहीं कहा न?" "कहूँ?...कहूँ?" शान्तलदेवी ने बिट्टिदेव का चेहरा देखा। वह भी बड़ी आसक्ति से उसकी ओर देख रहे थे। "कहूँ तो सन्निधान को असन्तोष तो नहीं होगा न?" शान्तलदेवी ने पूछा। "कहो, देवी। तुम्हारी किस बात से हम असन्तुष्ट हुए हैं?" "लो सुनिए। सन्निधान की भगवान् विषयक यह कल्पना सुनकर और हाथ में उस डण्डे को देखकर मेरे भीतर एक विचित्र विचार उठा। उसी के कारण एकाएक मुझे हंसी आ गयी। मुझे लगा- सन्निधान अपनी बेटी के कारण, कही बात के अनुसार, एक दिन उस नये भगवान् के भक्त बनकर उसके नाम का स्मरण करने लगे और उसी को पुकारते घण्टी बजाते फिरने के लिए तैयार हो गये तो... | इसीलिए शायद कहते हैं : 'करवाल पकड़नेवाले हाथ में काठ का टुकड़ा।' शायद सन्निधान ही इस उक्ति के प्रचारक होंगे-यों कल्पना हुई तो हैसी आ गयी।" तुरन्त बिट्टिदेव ने डण्डे को फेंक दिया और शान्तलदेवी की तरफ एक विचित्र ढंग से देखने लगे। उनकी बात सुनकर कुछ लज्जा भी आयी। वहाँ एकान्त रहा, किसी के आने से पहले उन्हें सजग करने की शान्तलदेवी की बुद्धिमत्ता से कुछ समाधान भी हो गया। शान्तलदेवी की इस चिन्तनधारा के पीछे छिपे लघु-हास्य की प्रवृत्ति भी उनकी समझ में आ गयी फिर भी उस हास्य से उन्हें सुखानुभव ही हुआ। तभी एकाएक राजकुमारी जोर से चिल्ला उठी और करवट बदल ली। 110 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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