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________________ पहुँच गयी। उन-उन जगहों के श्रेष्ठ वैद्य जल्दी ही यादवपुरी आ पहुँचे। सारे राष्ट्र में सन्देश पहुंच गया। सभी वैद्यों के पास आह्वान भेजा गया। राष्ट्र के कोने कोने से वैद्य आने लगे। बीमारी का ब्यौरा मालुम था इसलिए जिसे जो सूझा वही व्याख्या उसने की। राजमहल में जो भी आएँ उनके लिए खुला स्वागत था। सबका एक ही लक्ष्य रहा कि राजकुमारी नीरोग हो जाएँ। सोमनाथ पण्डित ने जन्त्री देखकर समझ लिया कि जिस दिन बच्ची बीमार पड़ी उस दिन स्वाति नक्षत्र था; एक महीने तक यह अस्वस्थता रहेगी। फिर भी उन्होंने सभी वैद्यों को सहयोग दिया। उनके मन में जो महीने भर की अवधि का हिसाब रहा वह भी समाप्त हो गया। सुधार नहीं दिखाई दिया। बिट्टिदेव-शान्तलदेवी बहुत घबरा गये। बिट्टिदेना ने अपने समस्त राजकीय कार्य स्थगित कर दिये। मारसिंगय्या और माचिकब्धे, रानी पद्मलदेवी और उनकी बहनें, रानी बम्मलदेवी और रानी राजलदेवी, सभी आये हुए थे। सभी आ गये, इससे होता क्या है ? स्वास्थ्य तो सुधरा नहीं! समूचे राष्ट्र के शिवालयों, जैन मन्दिरों आदि में सर्वत्र राजकुमारी के स्वास्थ्य के लिए पूजा-अर्चा सम्पन्न हुई। मनौतियों मानी गयीं। मृत्युंजय मन्त्र का जाप हुआ। यह भी घोषणा हुई कि राजकुमारी को स्वस्थ करनेवाले को पुरस्कार और विरुदावली से सम्मानित किया जाएगा। एक-दो बाह्य राष्ट्रों से भी वैद्य आये थे, मगर उनसे कुछ हो न सका। बल्लाल-जीवरक्षक चारुकीर्ति पण्डितजी के पास भी खबर पहुंची थी। वे भी आ गये थे, परन्तु कोई सफलता नहीं मिली। पालदेवी को एरेयंग प्रभु के अस्वस्थ होने के अन्तिम दिनों की याद आ गयी। उस समय उसके महल में यन्त्र-तन्त्र-मन्त्र जो कुछ हुआ था सो सब स्मरण हो आया। उसके मन में संशय पैदा हुआ। उसने मन-ही-मन निश्चय कर लिया कि यह दूसरी रानियों की करामातों का ही नतीजा है। पहले इस लड़की पर प्रयोग कर, बाद में एक-एक कर राजकुमारों को बलि चढ़ाने के लिए बनी योजना है। वह अपने इन विचारों को छिपाये नहीं रह सकी, सीधे शान्तलदेवी से कह बैठी। शान्तलदेवी ने कहा, "न, न. यों हमें शंका नहीं करनी चाहिए। बेचारी, वे तो यहाँ थी ही नहीं। उन पर दोषारोपण करना अच्छा नहीं। अभी हमारी ग्रह-गति अच्छी नहीं, हमें मानसिक शान्ति नहीं मिल रही है, और यह सब भी हुआ है। निष्कल्मष व्यक्तियों पर सन्देह करें तो उस पाप का फल भी हमें भुगतना होगा। ऐसा कुछ नहीं हुआ है। आप अपने मन को ऐसे विचारों से कलुषित न करें।" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन :: 103
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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