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________________ H 'तुम कुछ भी कहो, मुझे तो विश्वास नहीं होता । चालुक्य विश्वास पैदा कर धोखा देनेवाले हैं। किसी से कहे बिना पिरियरसी चन्दलदेवी तुम्हारी शादी में चोरी छिपी आयी थीं न ? स्वार्थ के लिए चाहे जो भी कर सकते हैं। तुम्हारा मन इतना निष्कपट हैं कि वह सारी दुनिया को निष्कपट मान बैठता है। पहले ही मुझसे एक बार कहती तो मैं इस शादी को न होने देती।" पद्यलदेवी ने कहा । 'शादी रुकने से द्वेष ही पैदा होता। यह द्वेष तो तब भी किया जा सकता था न ?" 14 " तो तुम्हारा मन भी कहता हैं कि ऐसा हो सकता है। है न?" "मैंने यह तो कहा नहीं न? मुझे किसी पर शंका होती ही नहीं।" "तुम्हारा यह मनोभाव एक न एक दिन तुम्हें मुसीबतों में डाल देगा। इसलिए मेरी बात मानो ऐसे लोगों को दूर रखो। इन रानियों को आसन्दी भेज दो। किसी मन्त्रवादी को बुलवाकर प्रतीकार मन्त्र-तन्त्र करवाओ।" "मुझे इन मन्त्र-तन्त्र आदि पर विश्वास ही नहीं । कृपया इस विषय में मुझे कोई सलाह न दें। अब तक इसे भूतचेष्टा समझकर अनेक मन्त्रवादी आये थे । उनमें किसी को राजकुमारी तक पहुँचने का मौका ही नहीं दिया गया।" शान्तलदेवी ने कहा। "मुझे जो सूझा मैंने बता दिया। अब आपकी मर्जी। जो मुझे सूझता है उसे कह ही देती हूँ। इसे सन्निधान से भी कहूँगी, दूसरों से भी कहूँगी।" पचलदेवी ने कहा। 44 'सब लोग मेरी तरह विचार करनेवाले नहीं हैं। इसका परिणाम अच्छा नहीं होगा। फिर से राजमहल में वही पुराना किस्सा न हो। यह बात मेरे और मेरे बच्चों के जीवन से सम्बन्धित है। मुझे अपने आप में स्वतन्त्र रहने दीजिए तो बड़ा उपकार होगा। आपके पैरों पड़कर विनती करूँगी. आप अपने इस सन्देह को दूर कर मन को निर्मल बनाये रखें। जो शंका आपके मन में उठी है उसे फैलाने का प्रयत्न मत कीजिए। " "ठीक है। जब तुमने ही अपनी बरबादी का निर्णय कर लिया है तो मैं क्या करूँ ? जो भी सफेद हैं उसे दूध मत समझो। पहले राजमहल में जो सब गुजरा उससे जितना कष्ट मुझे हुआ, उतना किसी और को नहीं हुआ है, जितना दुःख मैंने अनुभव किया उतना और किसी ने नहीं किया। उस तरह की असह्य वेदना का अनुभव किसी को न हो - यही मैं चाहती हूँ। अन्यथा इस विषय में मेरा कोई सम्बन्ध नहीं । मुझे गलत मत समझो, मेरी बातों का अन्यार्थ न लो। मेरे मन में भलाई की आकांक्षा हैं इसलिए जो सूझा उसे दिल खोलकर कह दिया। यदि आपको विश्वास न हो तो मैं भला कर ही क्या सकती हूँ?" 1604 पट्टमहादेवी शान्तला भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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