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________________ "थोड़ा-बहुत सोयी। बीच-बीच में बड़बड़ाकर कई बार जागी। जब कभी जागती तो मुख पर पसीना ही पसीना होता।" "उस पहले जैसा कहीं डर तो नहीं गयी?" "ऐसा होने का कोई कारण शायद नहीं। फिर भी दर्याप्त करेंगे।" "वह भी जान लें तो अच्छा। आज्ञा हो तो मैं हो आऊँ?" । "आप ही को आने की आवश्यकता नहीं; नौकर को भेज दूंगी।" "नहीं, मैं ही आऊँगा। ओषधि एक बार मैं स्वयं दे जाऊँ, यही अच्छा है।" "वही कीजिए।" पण्डितजी चले गये। थोड़ी देर में पण्डितजी ओषधि बनाकर ले आये। राजकुमारी को दी। उन्होंने समझा था कि राजकुमारी का स्वास्थ्य दो-तीन दिन में सुधर जाएगा परन्तु उनकी कल्पना सही नहीं रही। राजकुमारी की स्थिति दिन-ब-दिन विचित्र होती गयो। वह बार-बार हड़बड़ा उठती, घबड़ा जाती, घबड़ाहट के कारण बार-बार अधिक कम्पन हो उठता। उस दिन शरीर आग की तरह तप रहा था। वमन मात्र होना रुका था। फिर भी बुखार के न उतरने, नींद के न आने से पण्डितजी घबरा गये। उन्होंने इस बात को छिपा न रखा, पट्टमहादेवी से कह दिया, "दूसरे वैद्य का आकर देखना सब दृष्टियों से उचित होगा और प्रस्तुत प्रसंग में तो यह बहुत ही आवश्यक है।" 'पोयसल राजमहल के वैद्य बीमारी का निवारण न कर सके-बाहर के लोगों में इस तरह की बात फैल जाए तो आपकी प्रतिष्ठा में बट्टा नहीं लगेगा?" शान्तलदेवी ने पूछा। "पट्टमहादेवीजी, यहाँ पण्डित के गौरव का प्रश्न प्रधान नहीं। यह एक व्यक्ति के प्राणों का सवाल है। रोग को पहचानकर उसका निवारण करना ही होगा। कोई वैद्य एक बीमारी का अगर पता न लगा सके और सब कुछ जानने का गर्व करे और रोगी को कष्ट देता रहे तो वह वैद्यक-वृत्ति और आयुर्वेद के प्रति द्रोह होगा। ऐसे मौके पर अन्य वैद्य को बुलवाकर रोग का पता लगबाना और चिकित्सा करवानायही वैद्यकीय विधान है। उससे गौरव ही बढ़ेगा। थोड़ी-सी भी जानकारी मिल जाती है तो इससे नुकसान नहीं होगा। इसलिए अविलम्ब दूसरे पण्डित को बुलवा लिया जाए तो अच्छी। अगर सन्निधान से निवेदन करने का आदेश मुझे दें तो मैं स्वयं निवेदन कर लेंगा, अथवा उचित समझें तो पट्टमहादेवी ही सूचित करें।" । "मैं स्वयं कहूँगी। कोई भी आए, आप उनके साथ रहकर सहयोग देते राजमहल में उद्विग्नता बढ़ गयी थी। बात बेलापुरी और दोरसमुद्र में भी 102 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग तीन
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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