SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तो अच्छा हुआ। अन्दर ही रहता तो अधिक कष्ट देता।" "हमारी पट्टमहादेवी आयुर्वेद की पण्डिता भी हैं, यह हम भूल ही गये थे।" "आयुर्वेद और ज्योतिष दोनों का ज्ञान होने पर भी उनका प्रयोग निजी जनों के साथ नहीं करना चाहिए। हरियला की चिकित्सा के लिए पण्डितजी का मार्गावलम्बन ही हमारे लिए सहारा है। पण्डितजी ने कहा भी है कि घबड़ाने की जरूरत नहीं। सन्निधान आराम करने जा सकते हैं।" "ठीक लगे तो आसन्दी को समाचार भेजकर रानियों को बुलवा सकते हैं।" "उन बैचारियों को यहाँ की झंझटों में फंसाने के लिए क्यों बुलवावें? वे अपने में आराम से रहें।" __ "वे यो समझने के स्वभाव की नहीं। अलावा इसके राजलदेवी बच्चों पर विशेष प्रीति रखती हैं। कई बार उन्होंने कहा भी कि बच्चों में से किसी को साथ ले आसे तो अच्छा होता।" "यहाँ क्या लोगों की कमी है ? फिर भी सन्निधान बुलवाना चाहें तो कल ही खबर देकर बुलवा सकते हैं। हरियला के लिए उन्हें कष्ट न दें-मेरा ऐसा विचार है। मेरे इस '+' की अन्यथा ही लंगे। "तो क्या हम अन्यथा लेंगे, ऐसा सोचती है?" "सन्निधान के सम्बन्ध में मुझे कोई शंका नहीं। मेरी रीति से सन्निधान अच्छी तरह परिचित हैं इसलिए मेरी भावना को ग्रहण करने में सन्निधान असमर्थ नहीं हैं।" ___ "ठीक है।" कहकर बिट्टिदेष चले गये। पण्डितजी अपने कहे अनुसार दूसरे दिन सूर्योदय के पहले ही आ गये और नाड़ी की परीक्षा की। उन्हें नाड़ी की गति का सही परिचय नहीं मिला; बीच-बीच में कुछ समय छोड़कर उन्होंने कई बार परीक्षा की। "क्यों पण्डितजी?" शान्तलदेवी ने पूछा। "नाड़ी की गति बड़ी विचित्र है, इसलिए रोग के मूल को समझना साध्य नहीं हो रहा है।" पण्डितजी बोले । "वैद्य को घबड़ाना नहीं चाहिए। आप हड़बड़ाकर जो भागे आये, इसे देखकर मुझे ऐसा लग रहा है।" शान्तलदेवी ने कहा। "कर्तव्य है; सूर्योदय क्या मेरी प्रतीक्षा में रुकेगा? वक्त पर अपना कर्तव्य करने के लिए चला आया। मुझे कोई घबराहट नहीं है।" "तब तो ठीक है।" __ "मझे अब नयी ओषधि बनानी होगी। दो घडी बाद कोई आ जाए...न, न, मैं ही आऊँगा उसे लेकर। फिलहाल यह घुटी शहद में मिलाकर दें तो काफी है। राजकुमारी जी रात में सोयीं न?" पट्टपहाटेवो शान्तला : भाग तीन :: 101
SR No.090351
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages483
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy