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तो उत्तम होगा।"
अपरिचितों के कार्य के विषय में हस्तक्षेप करना अच्छा नहीं, दणदनायिका जी। वह भी ऐसी हालत में जबकि उनका स्वभाव ही किसी से मिलने-जुलने का नहीं।'' कविराज ने कहा।
"मैं परिचय करा दूंगी। बाद में सब सहज भाव से आप ज्ञात कर लेंगे।"
'यदि उनकी ऐसी इच्छा बनती हैं तो इससे दोनों का लाभ हो सकेगा। वास्तव में, इस बार बलिपुर हो आने से, वहाँ के कवि बोकिमय्या, स्थापत्यकार दासौज, शिल्पी-नाट्याचार्य गंगाचारी आदि के साथ विचार संगोष्ठी से अपनी ज्ञानसम्पदा को बढ़ाने में मुझे बहुत सहयोग मिना। इसलिए साहित्य-सेवियों से परिचित होने से मिलनेवाले लाभ को मैं समझता हूँ। कृपया पूछ लें, यदि वातां की उनकी इच्छा हो तो मैं तैयार हूँ।"
“मैं दर्यापत करूंगी। अच्छा, यह तो बताइए कि युवरानी जी के साथ हेगड़ेत्री के परिवार के लोग क्यों नहीं आये? उन्हें आना चाहिए था न?"
'मी नहीं मालम।" "शायद लड़की के विवाह का प्रसंग रहा होगा।"
“ऐसी कोई भी बात सुनने में तो नहीं आयी। ऐसा कोई समाचार दण्डनायिका जी को सुनने में आया है क्या?''
"नहीं, कुछ नहीं। लड़की व्याह के योग्य हो गयी है, इकलौती बेटी है. कहीं किसी अच्छे, योग्य वर को देख रखा होगा, ऐसा मुझे लगता है।
“ऐसा कुछ होता तो मालूम न पड़ता?"
"अच्छा वर मिल जाए तब तो। मैंने कई बार सोचा है, कोई योग्य वर इमारी नज़र में आए तो उन्हें सूचित करें। परन्तु पहले से ही यदि उन्होंने कहीं निश्चय कर लिया हो तो...।"
जहाँ तक मैं समझता हूँ, वे अभी विवाह की बात पर विचार ही नहीं कर रहे हैं। फिर भी, दण्डनाधिका जी अगर बताएँ तो वे स्वीकार करेंगे।"
"भई उसमें क्या' कोशिश करेंगे। बड़ी अननमन्ट लड़की है। हर कोई यही चाहेगा कि ऐसी लड़की को कोई अच्छा पर मिले।" ___ “वह लड़की केवल अलमन्द ही नहीं, विरन भी है, दण्डनायिका जी। बहुत प्रतिभाशाली हैं। बहुत तेज धुद्धि है उसकी। किसी भी विद्या को वह यों ही सीख लेती है। संगीत-साहित्य ही क्या, अब तो वह शस्त्र-विद्या में भी बड़ी निपुण हो गयी है।"
सुनकर दण्डनाविका घामब्बे जोर से हंस पड़ीं। कवि नागचन्द्र को बात का सत कुछ बदला-सा मानूप पड़ा। बातों की गति
पट्टमहादेशी भान्तला : भाग दो :: 18