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________________ जोर पकड़ रही थी इसलिए उन्होंने बोलना बन्द करके दण्डनायिका की ओर देखा। ___ 'बड़े अच्छे कवि हैं आप! कहते हैं कि लड़की शस्त्र-विधा में बड़ी निपुण है। अरे भाई, उसके बाप ने इकलौती बेटी समझकर उसके हाथ में तलवार पकड़ा दी होगी। बस इतने से ही वह निपुण हो गयी? फिर वह तो कोपल स्वभाववाली लड़की है। आमतौर पर स्त्रियाँ कोमल स्वभाव की ही होती हैं। शस्त्र-विद्या की उन्हें क्या ज़रूरतः क्या उसे कही युद्ध करने जाना , बड़ी-बड़ी मूंछवाले इन पुरुषों के होते हुए?" "आपकी बात सच है। नारी को युद्ध में जाने का मौका ही कम मिलता है। परन्तु हेग्गड़े जी की लड़की के बारे में मैंने जो कहा वह सोलह आने सच है, इसमें अतिशयोक्ति नहीं।" "कविजी, मुझे तो आपकी बात पर विश्वास नहीं होता।" । "छोटे अप्पाजी के बारे में आपके क्या विचार हैं?" कवि ने पुछा। "सुना हैं वे बहुत तेज बुद्धिवाले हैं। खुद दण्डनायक जी उनके हस्तकौशल की बड़ी प्रशंसा करते हैं।" "उन्हीं को अगर इस लड़की ने हरा दिया हो तो?" गा, ऐसा! वे दोनों भला क्यों लड़ पड़े।" “वह एक स्पर्धा थी।" और कवि नागचन्द्र को इस स्पर्धा के बारे में जो कुछ मालूम था, उसे बड़े ही दिलचस्प दंग से सुना दिया। सुनकर चामध्ये दंग रह गयीं। कुछ क्षण के लिए ख़ामोशी-सी छा गयी। बात बन्द होने पर कवि को कहने के लिए कुछ सूझा नहीं । अपने चल देने की इच्छा को कैसे प्रकर करें, यही सोच रहे थे। इधर-उधर देखा। अपना उत्तरीय उठाया और धीरे-से बोले, "दण्डनायिका जी का बहुत समय मैंने ले लिया। अब आज्ञा हो..." ___"कुछ नहीं । वाक़ई यह आश्चर्य की बात है। मेरी अक्ल को कुछ सूझता नहीं। अच्छा यह बताइए कविजी, नारी के लिए सचमुच यह सब चाहिए क्या? क्या हेगड़ेजी की अक्ल मारी गयी है जो उस लड़की को शस्त्र-विद्या सिखा रहे 'दण्डनायिका जी, मैं इस बारे में क्या कह सकता हूँ।" "जिस विद्या का उपयोग कर नहीं सकते उसे सीखकर भी क्या? हमारे देश में शस्त्र-विद्या सीखकर पहले कभी कोई नारी युद्धभूमि में नहीं उतरी । ऐसी कोई घटना आपको याद हैं?" ___ "पौराणिक कथा-गाथाओं में यत्र-तत्र ऐसा उल्लेख मिलता है। परन्तु जहाँ तक मैं जानता हूँ, अब तक के इतिहास में किसी नारी के युद्धभूमि में उतरने की बात नहीं है। आप शायद ठीक ही कहती हैं कि जिस विद्या का उपयोग नहीं, 14 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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