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________________ उसे सीखने का भला क्या प्रयोजन!' "तब फिर इस विद्या के सिखाने में यह दिलचस्पी क्यों?'' 'मुद्दो भी नहीं मालूम, दण्डनायिका जी।" 'मेरी भी समझ में कुछ नहीं आ रहा। किसी लक्ष्य के बिना कोई इस तरह के काम में व्यर्ध ही अपना समय नष्ट नहीं करता। अच्छा कविजी, आपको कष्ट दिया। आप जाना चाह रहे हैं।" "कष्ट क्रिस लात का? यहाँ आना मे" कहा था . नाम हूँ।" कवि नागचन्द्र के चले आने पर चामञ्च वहाँ से उठी और अन्दर की ओर के बड़े प्रकोष्ठ में जाकर झूले पर बैंट, हल्के-हल्के पेंग भरती, कवि की बातों का मन-ही-मन दुहराती गम्भीर हो गयी। उसके दिमाग में उन हंग्गड़े दम्पती की ही बातें उमड़-घुमड़ रही थीं। उसे लगा ये शतरंज का खेल खेल रहे हैं। वे लोग जरूर किसी बड़े लक्ष्य को साधने के लिए ही यह सब चाल चल रहे हैं। कितनी रहस्यमय गति है इन लोगों की! शस्त्र-विद्या का यह शिक्षण...गजकुमार को हरा देना...निश्चित ही किसी भावी घटना के बीज छिपे हैं। जो भी हो, वह रहस्य खुलना ही चाहिए। इसका पता न लगा लूँ तो मैं भी दण्डनायिका चामब्बे नहीं। विचारों में वह इतनी डूब गयी थी कि उसे कुल ध्यान ही नहीं रहा । वह तब सचेत हुई जब दण्टनायक के आने की किसी ने सूचना दी। - झूले से उतरकर वह दण्डनायक के कक्ष की ओर चल पड़ी। दरवाजे तक पहुँची ही थी कि दण्डनायक राजमहल के परिधान उतारकर हाथ-मुंह धोने के लिए स्नानगृह की तरफ़ जाते दिखाई दिये। पत्नी को देखते ही पूछा, "क्या कुछ कहना था?" "कुछ नहीं। स्वामी के आने की खबर मिली तो चली आयी।'' "मालूम हुआ कि कविं नागचन्द्र जी यहाँ आये थे। काछ ख़ास बात रही होंगी।" दण्डनायक ने पूछा। दण्डनायिका को बड़ा आश्चर्य हुआ-इन्हें कवि के आने की बात मालूम हो गची। फिर भी सहज ढंग से बोली, "हाँ, आये तो थे। मैंने ही कहला भेजा था। अकारण ही मैंने उनके बारे में कुछ कटु आलोचना की थी न उस कटुता को दूर करने के उद्देश्य से बुलवाकर कुशल समाचार पूछ लिया।" ''मैंने कवि को देखा तो उन्हें बुलाना चाहा, परन्तु मेरा बलाना तुम्हें ठीक लगेगा या नहीं यह सोचकर चुप रह गया। दडिगा कहाँ है?" "क्यों?" पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 15
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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