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________________ "बलिपुर के हेग्गड़े जी को बुलाया है। ये जव आएँ, आदर के साथ उन्हें अन्दर लिवा लाए। यही कहना है।'' दण्डनायिका ने कुछ नहीं कहा। "क्यों, क्या त्यात है? हेग्गड़ेजी का आना तुम्हें पसन्द नहीं?" दण्डनायक ने पूछ। ___“आपके राजकार्य क्या होते हैं, मैं क्या जानूं? मेरा उसके साथ क्या सम्बन्ध..." "राजकार्य होता तो घर पर नहीं बुलाते। इधर तुमने जो दरार पैदा की है, उसे पाटना ही होगा। तुम्हारे भाई की सलाह के अनुसार ही हम यह कर रहे हैं। तुम्हें भी..." ___'मैं उनके कहे अनुसार ही तो चलती रही हूँ। हेग्गड़ेजी के लिए विशेष आतिथ्य की तैयारी करनी होगी?" "नहीं, यह आतिथ्य का समय नहीं। घर पर कोई अतिथि आए तो सदा की तरह सहज व्यवहार ही उसके साथ होना चाहिए। इसमें किसी दिखावट की शरूरत ही क्या है?" “ठीक, मैं डेिगा से कह दूँगी। आप स्नान कीजिए।" दण्डनायक चले गये। दडिगा पिछवाड़े के काम पर जुटा था। चामब्बे ने नौकरानी सावियचे को उसे बुला लाने के लिए कहकर खुद रसोई में चली गयी। स्नानगृह से दण्टनायक जी बाहर निकले तो दडिगा सामने था। उसने अभिवादन करते हुए पूछा, “मालिक ने बुलाया है?" । "बलिपुर के हेगड़ेजी आएंगे। उन्हें आदरपूर्वक अन्दर लाकर बारहदरी में बैठाकर मुझे खबर कर देना। उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार होना चाहिए। ये दूसरे हेगड़े लोगों के जैसे नहीं। वे कुछ खास व्यक्ति हैं। हमारे युवराज के बहुत आत्मीय हैं वे। समझे।" ''समझ गया, मालिक।" कहकर वह चला गया। रसोई से चामब्बे आयी और पूछने लगी, “मालिक का नाश्ता अभी होगा या हेगड़ेजी के साथ?" ___ मसा करमा ठीक होगा". . "न न, मैं इस सम्बन्ध में कुछ नहीं कहूँगी। आप हैं, आपके हेग्गड़े हैं। जैसी आपकी आज्ञा होगी, वैसा ही करना मेरा काम है।" - ___ऐसी बात है तो जब हेग्गड़ेजी आएँ तब साथ बैठकर सहज भाव से कुशल-क्षेम पूछने और बातचीत करने में तुम्हें भी हाथ बँटाना होगा।" "आप दोनों के बीच में मैं..." 16 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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