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"राला आश्चर्य !''
" सा नहीं लगता। इस तरह का कतन्नता ज्ञापन तो उनका मन स्वभाव ।'
"आप उनक निकट । आपकः उनके विमान का अच्छा परिचय है : मंगे तो उनस IIREEी बार भंट हुई. लो मी तव अव ते बद राजकुमार के. पनवन मं यहां जाबो धीं। तब एक बार मन में देखा था। दूसरी बार जब आरी थीं तब हमारी चामला और उनकी वटी के बीच विशेष परिचय का था. और तभी काधिक निकट से उन्हें, दवन का मोका मिला था।''
मी, एक बार नारयम के बारे में वात उठी तो उस समय उनकी बेटी ने आपकी बेटियों के गुरु उत्कल में नानाचार्य कं मृदंग-वादन के बारे में बहुत प्रशंसा की थी और कहा था कि पं गति-विन्यास फो चखुगे प्राप्त करनी हो तो दंग का वादन उस स्तर काकाना शहिए। मृदंग-याइन की बात प्रशंसा कर रही थी न ।'
''दाइनायक जी साधारण व्यक्ति को बुलवाकर कहीं दया की शिक्षा दिलाएँगे। ऐसा हो सकता है और ह रियां : ini,
Ai, -4 और कार की शिक्षा देने के लिया हपने एक कवायत्री को भी नियुक्त किया
" कहाँ की...?"
वह इस बारे में कार नहीं बताती। शाइन इनकं अपना काह नहीं। पाश्च की खोज में यहाँ आयी थीं। नहाकयों को पढ़ाने लायक कोई वृद्ध पाहत तो मित्र नहीं। घल्ली उभर की गति को बनाने के लिए कोई महिला ही हो. यह साचकर इण्डनायक जी ने अच्छा समझकर उन्हीं का नियक्त किया है। उन्हें तो बस अपने काम में काम हैं। लोगों से विशेष मिलती-जुलती भी नहीं। व? ही गम्भीर भाव की है।"
"वहत . इच्छा। बेटियों को उन्य शिक्षा मिलनी ही चाहिए।' ना हम कं जान सकेंग: जाप ही कहें उनसे।'
मालिकाओं की पड़ने में बढ़ाती हैं. जो समझ लेना चा कि गुरु अछ। बोच्चयों क्या कहती ?"
"वे लो उन्हें छोड़नी है नीं, उनमें लगा ही रहती हैं।'
तत्र तो समझना चाहिए कि शिक्षण मन्नोपजनक ढंग ा रहा है।" ''गट्टनायक जी भी यहीं न, फिर भी आप कभी एक बार दयांफ़्त करें
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महादेवी शान्तला : 'भाग की