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________________ झाड़-झंखाड़ से सारी बगीची भरी पड़ी है। कहीं पैर रखने तक की जगह नहीं है।'' . शान्तला ने कहा। ___ "आप इस काम में हाथ क्यों लगा रही हैं अम्माजी ? नौकर हैं न, उनसे कह दें, ठीक-ठीक करेंगे। अभी-अभी तो आप आयी हैं।" ''जरा तुम अशीची की हालत तो देखो। मकान की बनलक्ष्मी कहलाती हैं यह। मगर वह कंश बिखेरे राक्षसी जैसी भयंकर लगे तो उसे देखकर किसे वेदना नहीं होगी? मेरे हाधों में मिट्टी लगी होने से तुम्हें जैसा लगा, झाड़-झंखाड़ की गन्दगी से भरी बगीची को देखकर मुझे भी ऐसा ही लगा। मैं हाथ धोकर भी आ सकती थी लेकिन तुम्हारे पास आने में तब देर हो जाती। मैं जैसी थी वैसी ही चली आयी। वैठी, हाथ धोकर अभी आती हूँ।" कहकर शान्तला आन्दर चानी गयी। रेविमय्या की आँखें गीली हो आथीं। ऑस् प्रकट न हों इसलिए धोरे-से पोंछ लिये। इतने में साल भ ा -. "राजमहल का क्या समाचार है, रेबिमव्या? जो नौकरानी मुझे बुलाने आधी थी उसने बताया था कि प्रभुजी का स्वास्थ्य, सुनती हूँ, अब कुछ सुधर रहा है। भगवान की कृपा से प्रभ शीघ्र ही नीरोग हो जाएँगे। भगवान जान, युबरानी पर कैसी गुजर रही होगी! राजकुमारों का शिक्षण तो अच्छी तरह चल रहा होगा न? दण्दनायिका की बेटियों ने अब तक संगीत और नृत्य में प्रवीणता प्राप्त कर ली होगी। उनकी साहित्य-गुरु वह देवीली यहीं हैं? उत्कल के नाट्याचार्य भी वहीं शान्तला प्रश्न करती जा रही थी कि रेविमच्या बीच में ही बोल उठा, "अम्माजी, एक साथ इतने प्रश्नों का उत्तर मैं कैसे दे सकूँगा? वैसे सारे काप अपने ढंग से चल रहे हैं। दोनों गुरु यहीं हैं, इतना मुझे मालूम है। प्रभु को छोड़कर दूर रहने का अवकाश मुझे अब तक नहीं मिला, इसलिए मुझे यह मालूम नहीं कि कहाँ क्या हो रहा है। आज प्रभु ने स्वयं मुझे पास बुलाया और पूछा, 'क्यों रेविमप्या, तुम अम्माजी को देखने नहीं जाओगे?' मैंने इतना ही कहा, 'यहाँ सन्निधान की सेवा में...' तो कहने लगे, 'कोई हल नहीं। पहले जाकर देख आओ। हमें मालूम है कि तुम्हारा दिल क्या चाहता रहता है। हमारी हालत के कारण तुम स्वयं अपनी इच्छा को प्रकट नहीं करोगे। या भी जानते हैं। इस प्रकार प्रभु ने मुझे भेज दिया। अम्माजी, ऐसे कब तक रहेंगे मालिका उनकी इस अस्वस्थता के कारण सारा पाउसले राज्य राहु-ग्रस्त-सा लगता है। मेरा मन कहता है कि किसी ने कुछ कर-करा दिया है।'' बड़े उद्वेग से कहा रेविमय्या ने। "क्या कह रहे हो! क्या कर-करा दिया ?" मारसिंगय्या ने पूछा। 14 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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