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________________ ''यही मन्त्र-तन्त्र, वामाचार वगैरह।" ऐसा कैसे हो सकता है, रेविमय्या : कभी किसी की चुराई तक न सोचनेवाले प्रभु के प्रति इस तरह का साहस कौन कर सकता है?''-मारसिंगय्या ने उत्तर दिया। जिसने किया, वहीं जाने। मगर प्रभु बड़े दृढ़ मनोवल के हैं। उन पर इन बातों का असर नहीं होता।" शान्तला ने कहा। "मैं भला यह सब क्या जानें। हो, गत अमावस्या के बाद प्रधानजो और दण्डनायक जी को बुलवाकर प्रभु बहुत देर तक बातें करते रहे। प्रधानजी तो इन दो दिनों में कोई तीन-चार बार आये होंगे। पता नहीं, क्या कुछ हो रहा है?" "राज्य पर किसी दुश्मन के हमले के बारे में खबर मिली होगी। खुद प्रभु के युद्ध में न जा सकने के कारण, उस सम्बन्ध में मन्त्रणा की होगी।' मारसिंगय्या ने कहा। ___"इस तरह पहले भी कई बार हो चुका है, हेग्गड़ेजी। दुश्मनों के हमलों के बारे में विचार-विमर्श करते वक्त मुझे प्रभु ने कभी बाहर रहने के लिए नहीं कहा। परन्तु अबकी बार वे दोनों जब मिले तब मुझे भी वहाँ नहीं रहने दिया। मुझे लगा, होगी कोई दूसरी ही बात। पर वह आज दोपहर स्पष्ट हो गयी।" रेविमय्या ने कहा। "क्या स्पष्ट हो गयी?" शान्तला की जानने की उत्सुकता बढ़ गयी । "राजधानी में रहनेवाले एक वामाचारी को देश-निकाले का दण्ड मिला है। इससे मेरे विचार की पुष्टि हुई है।" रेबिमय्या ने कहा। "इस तरह की शंका अगर प्रभुजी को हुई होती तो उसका तत्काल उपचार भी तो वे करा सकते थे ऐसा कुछ न करने के कारण तुम्हारी शंका केवल शंका मात्र ही है। बात कुछ और ही हो सकती है।" मारसिंगव्या ने कहा। "जो भी हो हेगड़ेजी, उस अमावस्या की रात यहाँ रहकर प्रभु की उस दर्द-भरी भी हालत को देखते तो मेरी बात को तुरन्त मान लेते। एक प्रहर रात जाते ही सारा शरीर पसीने से तर-बतर होकर एकदम ठण्डा पड़ गया था। इस सब पर विचार नहीं करना चाहिए :-अब जैसी भगवान की मर्जी ! प्रभु ने तो सबमें ६ गिरज उड़ेल दिया है," रेविमय्या बोला। "हम सबको बही तो चाहिए कि प्रभु कुशल रहें। अच्छा, यह तो बताओ, तुम कब तक छुट्टी पर हो?' हेग्गड़े ने पूछा। "कुछ निश्चित नहीं। फिर भी उनकी उदारता का हमें अनुचित लाभ नहीं उठाना चाहिए। इसलिए अब चलता हूँ।" रेविमय्या ने कहा। "युतुगा से नहीं मिलोगे?" शान्तला ने पूछा। पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 85
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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