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________________ हेग्गड़े और हेग्गड़ती आपस में बातें कर रहे थे कि तभी रेविमय्या वहाँ आ । पहुँचा। उसने दोनों को प्रणाम किया। कहने लगा- "मैं प्रभु से आज्ञा लेकर अम्माजी और हेग्गड़ती जी से मिलने के लिए आया हूँ।" । "आओ, आओ, बैठो। मैं राजमहल में तो कुछ बातचीत ही नहीं कर सका। देखा-देखी ही हो सकी। अच्छे तो हो!" मारसिंगय्या ने पूछा। 'जब प्रभु स्वस्थ नहीं, तो हमारे स्वस्थ होने से क्या, हेग्गड़ेजी? बेहद सक्रिय रहनेवाले प्रभु सदा मंजिल के एक प्रकोष्ठ में ही पड़े रहें तो बताओ किसे राहत मिल सकती है? अभी दो दिन से ही कुछ बेहतर हैं, वो भी आप सभी लोगों के आने का समाचार मिलने पर। वास्तव में प्रभु किसी को पास नहीं आने देते। युद्धभूमि से लौटने के बाद करीब एक साल बीतने को आया, इस बीच हमें निरुत्साह के दिन विताने पड़े हैं। प्रभुजी की अस्वस्थता के कारण राजमहल में किसी को कोई उत्साह नहीं। किसी का किसी काम में मन नहीं लगता।" 'वैद्यजी क्या कहते हैं, रेविमय्या?" "आवश्यकतानुसार औषधियाँ दे रहे हैं। चालुक्य पिरियरसी जी ने सिलहार के वैद्यजी को भी भेजा है। प्रभु की शारीरिक अस्वस्थता से भी ज़्यादा मानसिक अस्वस्थता है। इसे समझकर दूर कर सकनेवाले आत्मीयजन राजधानी में कोई नहीं हैं। हमारा विश्वास है कि अब आपके आने पर वह कमी न खटकेगी और प्रभुजी टीक हो जाएँगे। और, हेग्गड़ती जी के आने पर तो युवरानी जी को भी कुछ सहाग हो गया।" कहकर रेविमय्या ने इधर-उधर दृष्टि डालते हुए पूछा-"अम्माजी कहाँ हैं? दिखाई नहीं पड़ीं?'' "तुम्हारी आवाज उसे अभी सुनाई नहीं पड़ी होगी।" माचिकब्बे 'अम्माजी, अम्माजी, रेविमय्या आया हैं' आवाज लगाते हुए खुद अन्दर चली गयीं। थोड़ी ही देर में शान्तला आ गयी। "अरे! एक ही साल में कितनी बड़ी हो गयी हो अम्माजी!" आश्चर्य से आँखें फाड़-फाड़कर देखते हुए रेविमय्या ने कहा। "अच्छा! तुमने कहीं छोटे से बड़ा चश्मा तो नहीं लगा रखा है? जैसी पहले थी, वैसी ही हूँ। है न अप्पाजी?' कहते हुए शान्तला ने पिता की ओर देखा। "अम्माजी, मगर यह पूरा हाथ मिट्टी में क्यों सान रखा है?" रेविमय्या ने पूछा। "बहाँ आते ही इसने बागवानी शुरू कर दी है। बुतुगा, दासब्बे और अम्माजी तीनों ही पिछवाड़े की बगीची को साफ़ करने में लगे रहते हैं।" मारसिंगय्या ने कहा। "क्यों रेविमय्या, यहाँ घर की बरीची की देखभाल तो कोई करता नहीं? पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: ४५
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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