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व्यक्ति को देखा वही आपकी आशाओं को निराशा में परिणत करनेवाले हैं, वे ही आपके रास्ते का काँटा बने हैं। अच्छा, इस बात का रहने दीजिए। अब बताइए, और क्या दिखाई दे रहा है?'
'मुझे कुछ और देखने की इच्छा नहीं है।' 'इच्छा न हो तो छोड़ दीजिए। क्या दण्डनायक जी का यह सब दिखाई पड़ा?'
'नहीं, वह पूँछबाला व्यक्ति दिखाई पड़ा, यह सच है। वह एक स्त्री को साथ लेकर दूर चला गया। इतना मात्र दीख पड़ा। और कुछ भी नहीं दिखा। दण्डनायक ने बताया। __ 'वैसे ही देखते रहिए, अगर कुछ देखने की इच्छा हो तो दिखाई पड़ेगा।'
'मुझे सच-सच देखना है। वह दिखेगा? देखने को मिलेगा'
'अगर आपको कुछ भी नहीं दिखाई दिया तो यह सत्य है कि आपके कोई विरोधी नहीं हैं। विश्वास दिलाकर द्रोह करनेवाले हों तो ये धुंधले-से दिखाई पड़ सकेंगे। ज्ञरा और गौर से देखिए। क्या दिखाई दे रहा है?
'कुछ भी तो नहीं।' 'कुछ देर तक वैसे ही देखते रहिए। अगर कुछ दिखे तो बताइए। टण्डनायक जी कुछ देर बैठे देखते रहे। 'कुछ प्रकाश चा रोशनी जैसी दिखती है?' 'नहीं, कुछ भी नहीं। थाली और तैल-यही दिखाई देते हैं।' 'आसमान और तारे?' 'नहीं, कुछ भी नहीं। 'दण्डनायिका जी, आप फिर देखेंगी?' 'नहीं।' 'तो इस अंजन का विसर्जन कर दूं:' 'हौं।'
इसके बाद मैंने उस दीये को बझा दिया। बाद में दण्डनायक जी ने कहा, 'बहुत खुशी हुई, अब तुम जा सकते हो।'
मैंने पूछा-'आपको तृप्ति मिली?' 'बहुत ।' 'प्रधानजी को और राजपरिवार को हमारे बारे में कहिए।' मैंने कहा।
'ठीक है, समय आने पर बताएँगे। अन्च लुम जा सकते हो।' दण्डनायक बोले।
तब मैं अपना बकुचा बाँध उठकर खड़ा हो गया। मैंने जिस पारिश्रमिक की आशा की थी वह भी नहीं मिला, मैं हाथ मलता खड़ा रहा। तभी दण्डनायक जी
38 :: पट्टपहादेवी शान्तला : पाग दो