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________________ ने पूछा-'अब क्यों खड़े हो?' मैंने कुछ संकोच से कहा- 'पारिश्रमिक...' 'तुम्हारे घर पहुंच जाएगा, कल सुबह । तुम जा सकते हो। कहकर नौकर चोकी को साथ करके घर भेज दिया। इतना सब जो हुआ सो हू-ब-हू बता दिया "तब लो, तुम जब घर लौट रहे थे उस समय तक गाँव के लोग जगे नहीं थे?'' प्रधान गंगराज ने प्रश्न किया। 'अभी मर्ग ने पहली बार भी बौंग नहीं दिया था।" "सुबह तुम्हें पारिश्रमिक मिल गया?" "नहीं, अभी तक नहीं मिला। आज नहीं तो कल मिल जाएगा, उसकी मुझे इतनी चिन्ता नहीं।" "तो अंजन का काम समाप्त होते ही तमने पारिश्रमिक क्यों माँगा?" "जो काम किया उसका पारिश्रमिक तभी माँग लेना मेरी आदत है। आदत के अनुसार पूछ लिया।" "दण्डनायिका ने जो देखा उसे जानते हुए भी तुम कह नहीं रहे हो। क्यों?" “मैंने नहीं देता। अलाना हसन्हें वहाँ मनतो सय-कुछ नहीं दिखाई पड़ता। टण्डनायक जी को भी सब-कुछ नहीं दिखाई पड़ा।" "तुम झूट बोल रहे हो। दिखने पर भी कुछ न दिखा कहकर स्वाँग रच रहे हो। अब यह स्पष्ट हो गया कि तुम देखनेवाले के ही सिर पर, सही-गलत जो देखा उसे मदकर खिसक जाते हो, यही तुम्हारी रीति है।" । __ "ऐसा नहीं, प्रधानजी। इसमें हमें वैयक्तिक कोई रुचि नहीं हैं। जिनकी जो समस्या होगी, उन्हें उसका परिहार दिखना चाहिए।" ___ "तो पहली बार जब दण्डनायिका आयी थीं तब तुमने यह क्यों कहा था कि शुम स्वयं अंजन लगाकर पता लगाओगे। उसका पता लगाना तो तुम्हारी समस्या थी नहीं?'' "मेरी समस्या नहीं थी, यह ठीक है। परन्तु कुछ लोग अंजन के तैल में देखने से डरते हैं। तब उनकी तरफ़ से उनकी स्वीकृति होने पर, हम देखकर कह सकते हैं। परन्तु वे ही देखने को स्वीकार कर लेते हैं तो हम नहीं देखते। हमारी बृत्ति तो कमल के पत्ते पर के पानी की तरह है। वह हमें नहीं लगता।" "चोकी से गुप्त रूप से तुमने क्या-क्या बातें जाम रखी हैं?" "मैंने? ऐसी बात ही क्या थी जो मैं जानना चाहता" "चोकी ने हमें सब-कुछ बता दिया है।" "वह तो नौकर है। वह अपने बचाव के लिए भी उल्टा-सीधा बक गया पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो :: 5
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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