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________________ उतने स्पष्ट नहीं दिखते।' हैं - इसका पता लग गया ?" बहुत दूरी पर हैं * आपका मन अभी अनिश्चित स्थिति में है इसलिए स्पष्ट नहीं दिख पड़ते । कुछ और एकाग्र होकर देखिए तो मालूम पड़ सकेगा ।' 'आह' यह क्या? न, न, ऐसा हो ही नहीं सकता। जो हमें रोटी दे रहे हैं वे ही हमारी बुराई करेंगे? नहीं, यह सम्भव नहीं ।' 'जिन्होंने रोटी खायी है वे ही अगर बुराई करें तो रोटी देनेवाले बुराई क्यों न करें ।' 'मुझे विश्वास नहीं होता।' 'विश्वास न हो तो मैं क्या करूँ? वस्तुस्थिति वहाँ दीख रही है। वह करीब-करीब आपके मन का ही प्रतिबिम्ब है। अपने-आप को पहचानने के लिए यह अंजन उत्तम साधन है। किसे देखा, बताइए। बाद में कुछ समझाकर कहूँगा तब आपको विश्वास हो जाएगा।' "न, न, मैं नहीं बता सकूँगी।' "छोड़िए उससे होनेवाली भलाई - बुराई सब आपकी ही है। मेरा वह रक्षा - चन्त्र, अभी आपने जिन्हें देखा, उन्हीं के विरुद्ध आपकी रक्षा करेगा। आपने निश्चित रूप से नहीं कहा इसलिए हमने अपनी शक्ति से आपके अन्तरंग को समझकर काम करने का आदेश दे दिया उस काल कर दिया आ में आपको उससे प्रसन्न होना चाहिए। आप स्वयं नहीं कहेंगी तो उसे समझने के लिए हम खुद नहीं जाएँगे। हमारे प्रयोग का फल आपको दिख पड़ा है। आप विजयी हों तो और अधिक मदद देने के लिए हम अपनी शक्ति का प्रयोग करेंगे।' E 'नहीं, नहीं, ऐसा न करें। सम्भव हो तो अब तक जो किया है उसे भी लौटा लें ।' 'तब तो बात यह है कि आप गलत समझ रही थीं । परन्तु अब जो ग़लती हुई हैं, अन्याय हुआ है उसका निवारण कहाँ तक सम्भव है, कहा नहीं जा सकता । फिर भी कोशिश करूँगा। उस दिन जब मैंने विरोधियों के नाम बताने को कहा तो आपने नहीं बलाया। बता देतीं तो मैं सीधे उन्हीं पर अपनी शक्ति का प्रयोग करला । आपने नहीं बताया, इसलिए अब वह शक्ति आपको बाधा दे सकने वाले किसी अन्य व्यक्ति की ओर क्रियाशील हो रही है। उस शक्ति को जो आदेश दिया गया है उसके अनुसार काम करेगी ही बिना आदेश पालन किये लौटेगी नहीं ।' "इसके माने" 'माने यह कि मैं अब निस्सहाय हूँ। इतना तो सच है कि आपने जिस पट्टमहादेवी शान्तला भाग दो 57
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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