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________________ पर गया और अंजन लगाया, दण्डनायक जी के ही कमरे में। दण्डनायक जी, दण्डनायिका जी और चोकी, सिर्फ ये ही जाग रहे थे। दण्डनायक और दण्डनायिका ने तैल भरी थाली और मेरे बीच में स्थापित दीपक को स्थिर दृष्टि से निश्चित समय तक देखा। फिर तैल में देखा मेंने उससे पूछा, "उसमें कोई दिखाई दे रहा है?' 1 '' दण्डनायिका जी ने कहा- 'हाँ, कुछ लोग.... मैंने पूछा, 'वे कैसे हैं?" दण्डनायिका जी ने कहा, 'पूँछवाले आदमी लगते हैं 'पहले कभी आपने उन्हें देखा था?" मैंने पूछा। 'नहीं।' - दण्डनायिका जी ने बताया | 'अब क्या दिखता है ?" 'वे हाथ से इशारा कर बुला रहे हैं।' 'कोई आ रहा है?' 'कोई स्त्री आ रही है।' 'कौन है वह ? मालूम पड़ा ?' 'ऐसा लगता है कि मेरी साड़ी की तरह उसने भी साड़ी पहन रखी हैं।' 'यह मालूम हुआ कि वे कौन हैं?' 'हाय, वह तो मेरे ही जैसी लगती है। दोनों जगह में कैंसे रह सकती हूँ?" 'इसका उत्तर बाद में मिलेगा। क्या होता है, देखकर कहिए।' 'उस पूँछवाले आदमी के पास मैं गयी हूँ। हाय, उन्होंने मेरे कन्धे पर हाथ रखा ' 'इरिए नहीं। वे कोई और नहीं। वे महाब्रह्मचारी चिरंजीवी मारुति हैं। वे आपके मन की इच्छा को अभी पूरी करेंगे। आप जो देखना चाहेंगी उसे दिखाएँगे। वे जो कहेंगे वह कीजिए। मुझे दिखाई नहीं देता। इसलिए आप ही को स्पष्ट कहना होगा। अब क्या हो रहा है बताइए ।' 'मुझे हाथ पकड़कर ले जा रहे हैं। यह क्या है, हम कहाँ आ गये हैं? मुझे नहीं लगता कि मैं कभी यहाँ आयी हूँ। यह कौन-सी जगह है?" 'स्वयं ही मालूम हो जाएगा। जल्दी न करें। अब कोई और दिखाई दे रहा 'दूर पर कोई दिख तो रहा हैं।' 'उन्हीं से आपको कष्ट होगा। पता लगा, कौन है?' 'आह! उनसे ही हमें कष्ट होगा। यह सच है?" "सच है इसलिए तो मारुति महाराज ने आपको दिखाया है। ये कौन 56 :: पट्टमहादेवी शान्तला : भाग दो
SR No.090350
Book TitlePattmahadevi Shatala Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorC K Nagraj Rao
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year
Total Pages459
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size9 MB
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